Followers

Thursday, May 22, 2014

किरीट भाई के द्वारा घूमर नृत्य को लेकर की गई टिप्पणी से राजस्थानीयों में भारी आक्रोष

किरीट भाई आप अपने विवादास्पद बयान को वापस ले और राजस्थान के गौरव नृत्य च्च्घूमरच्च् पर गर्व करें। किरीट भाई जी - आपके विवादित बयान च्च्राजस्थानी महिलाओं को नाचना नही आता, उन्हें गुजरात का गरबा सीखना चाहिएच्च् । च्च्राजस्थानी नृत्य घूमर में न सिस्टम होता है न स्टेपच्च्
आपके इस बेबुनियाद तरीके से दिए गये बयान के प्रतिउŸार में हम कहना चाहेगे की आपने राजस्थानी संस्कृति की पारम्परिक विरासत को हद्यघात किया है और यह समस्त राजस्थानीयों का अपमान है। आपको बताना चाहेंगे की घूमर नृत्य लोकप्रियता में विष्व में चैथे स्थान पर है और टाॅप टेन में भारत का एकमात्र नृत्य हैै। घूमर ने राजस्थान के संगीत एवं नृत्य की दुनिया में धाक को बढाते हुए राजस्थान ही नहीं बल्कि पूरे भारत को गौरवान्वित किया है। घूमर नृत्य का दुनिया के श्रेष्ठ लोकनृत्यों की श्रेणी में चयन इसके नजाकत, लय-ताल के उत्कृष्ट प्रस्तुतिकरण के आधार पर ही किया गया है, इसलिए यह कहना कि इसमें न सिस्टम है न स्टेप सर्वथा अनुचित होगा।
किरीट भाई जी आप स्वंय विद्वान है आपको समझना चाहिए कि सबके लिए अपनी संस्कृति, संगीत, साहित्य का महत्व व सम्मान होता है, हमें दुसरों की संस्कृति को भी सीखना-समझना चाहिए किंतु किसी के संगीत व संस्कृति का अपमान या उसके लिए हल्के शब्दों का इस्तेमाल आप जैसे व्यक्तित्व को शोभा नही देता है। गुजरात के गरबा व रास का अपना महत्व है लेकिन उससे किसी दूसरे राज्य के गीत या नृत्यों का महत्व कम नही हो जाता है।
किरीट भाई आप अपने विवादास्पद बयान को वापस ले और राजस्थान के गौरव नृत्य च्च्घूमरच्च् पर गर्व करें।
आपके द्वारा दिए गए इस बयान से समस्त राजस्थानी गीत-संगीत प्रेमियों में रोष है व इससे महिलाओं व इस उत्कृष्ट नृत्य च्च्घूमरच्च् का अपमान हुआ है अतः श्री किरीट भाई जी से निवेदन है कि च्च्घूमरच्च् के इतिहास व इसके राजस्थानी नृत्यों में महत्व को देखते हुए आप संास्कृतिक हित में इस बयान को वापस लेकर एक उत्कृष्ट सांस्कृतिक सौहार्द का वातावरण बनाने का प्रयास करें।  
च्च्घूमरच्च् नृत्य के बारे में -
च्च्घूमरच्च् राजस्थान की एक पारम्परिक नृत्यषैली है जिसमें विभिन्न मांगलिक एवं खुषी के अवसरों पर महिलाएं श्रंृगारिक नृत्य करती है। मुगलकालीन युग में औरतें पुरूषों से पर्दा करती थी अतः यह नृत्य भी मुह ढककर ही तब से अब तब कमोबेष करने की परम्परा चली आ रही है। राजमहलों, सामन्तों, राजपूतों के घरों में विषेष रूप से किया जाने वाला यह नृत्य राजपूतों की महिलाओं की अन्य प्रान्तों में शादियों के साथ अनेक स्थानों पर विभिन्न रूपों में प्रचलित हो गया। विषेषतः गणगौर, विवाह आदि अवसरों पर यह नृत्य महिलाओं द्वारा स्वान्तःसुखाय किया जाता है। अच्छे वस्त्रों एवं गहनों से लक-दक महिलाएं जब स्त्रियोचित नजाकत के साथ इस नृत्य को करती है तो देखने वाले रोमांचित हो जाते हेै। कालान्तर में यह रजवाडों से निकलकर विद्यालयों में सिखाया जाने लगा व अनेक रूपों में प्रचलित हो गया।  

No comments:

Post a Comment

'; (function() { var dsq = document.createElement('script'); dsq.type = 'text/javascript'; dsq.async = true; dsq.src = '//' + disqus_shortname + '.disqus.com/embed.js'; (document.getElementsByTagName('head')[0] || document.getElementsByTagName('body')[0]).appendChild(dsq); })();

सर्व समाज ने दिया ज्ञापन

हिंदुओं पर बढ़ते अत्याचार को लेकर सर्व समाज द्वारा राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन बालोतरा वफ्फ बिल के विरोध की आड़ में सुनिश्चित योजना...