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Friday, August 8, 2014

वाणी पर विवेक का अंकुश होना चाहिए : पद्मसागरसूरि

बालोतरा। राष्ट्रसंत आचार्य पद्मसागरसूरीश्वर महाराज के षिष्य क्रांतिकारी विचारक मुनि विमलसागर महाराज ने कहा कि निन्दा करने की प्रवृति से गुण विदा हो जाते हैं। निन्दा दोषों का आह्वान मंत्र हैं। ईष्र्याभाव के कारण निन्दा की जाती है। स्वयं के दोषों को छिपाने का यह जरिया भी है। गलत महŸवाकांक्षाएं जीवन को तबाह करती हैं। जब वे पूरी नहीं होती हैं ता मनुष्य निन्दक व ईष्र्यालु बन जाता हैं।
शुक्रवार को नाकोड़ा जैन तीर्थ में विराट् चातुर्मासिक धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनिवर ने यह बात कही। उन्होने कहा कि महŸवाकांक्षी बनना बुरा नहीं है, पर लालसी बनना या योग्यता से अधिक पाने की लालसा रखना अवष्य ही बुरा है। यदि आप में कोई विषिष्टता है तो चिन्तित होने की आवष्यकता नहीं हैं। विरोधी चाहे जितनी ईष्र्या या निन्दा करें, लोग तो आपको हाथोहाथ स्वीकार कर लेगें। धाराप्रवाह अनूठी शैली में बोलते हुए मुनि विमलसागर महाराज ने आगे कहा कि दुनिया में तीन तरह की बुद्धि के लोग होते हैं। सामान्य, एवरेज और असामान्य। सामान्य बुद्धि का व्यक्ति निन्दक-आलोचक होता है। एवरेज बुद्धिमान सिर्फ घटना-प्रसंगों की चर्चा करता है। लेकिन असामान्य बुद्धिमान सदैव नये विचारों पर चिन्तन-मनन करता है। सुअर दूध को छोडक़र भी गंदगी में मुंह डालता है। बगुला मोती के बजाय मछलियों को पकड़ता है। कौवा शुद्ध जल के बजाय गन्दे पानी को पीता है। ये तीनों निकृष्ट प्राणी कहलाते हैं। निन्दक मनुष्य भी निकृष्ट होता है। वह अच्छाइयों को छोडक़र सिर्फ बुराइयों को देखता है और आलोचना कर अपना अमूल्य समय व्यर्थ करता है। मुनिवर ने आगे कहा कि सिंह भूखा मर जाता है, पर घास नहीं खाता। चातक पक्षी प्यास में तडफ़ता है, पर भूजल नहीं पीता। सिर्फ वर्षा का जल ही पीता है। राजहंस मात्र मोती चुगता है। शेष कुछ नहीं खाता। अगंधन कुल का नाग आग में जलकर मर जाना पसन्द करता है, फिर भी वमन किया हुआ वापस नहीं ग्रहण करता। इसी तरह गुणवान् मनुष्य दु:ख सह लेता है, लेकिन अच्छाइयों का मार्ग नहीं छोड़ता। गुणवान् कभी ईष्र्या या निन्दा का मार्ग नहीं अपनाता। आचार्य पद्मसागरसूरीश्वर महाराज ने कहा कि वाणी अमूल्य धन है। इसे व्यर्थ नहीं करना चाहिए। सोच समझकर बोलना चाहिए। विवेक अंकुश है, इसके बिना बोली गई वाणी अनर्थकारी होती हैं। जरूरत के अनुसार मधुर व हितकारी वचन बोलने का लक्ष्य रखना चाहिए। जो जबान का दुरूपयोग करते हैं, उन्हे फिर जबान नहीं मिलती। आचार्य प्रवर ने आगे कहा कि सत्य के रक्षण के लिए अथवा सत्य को सिद्ध करने के लिए तर्क की आवष्यकता होती है। लेकिन किसी को बेवकूप बनाने या छल-कपट करने के लिए तर्क नहीं होने चाहिए। गलत तर्क करना बुद्धि का दुरूपयोग है। वार्तालाप तो वाणी का व्यापार है। यह तोल-मोलकर अच्छे तरीके से किया जाना चाहिए। जिस तरह बाजार में व्यापार करते हुए हानि न हों, इस बात का ध्यान रखते हैं। उसी तरह वाणी के व्यापार में भी नुकसान न हों, ऐसी सावधानी रखनी चाहिए। आचार्य पद्मसागरसूरीष्वर महाराज ने आगे कहा कि दीन-हीन की सेवा करना सद्भाग्य का निर्माण हैं। भगवान और उनकी शक्ति दिखाने की वस्तु नहीं है। महसूस करने की चीज है। जैसे दर्द दिखाया नहीं जा सकता। सिर्फ उसका अहसास हो सकता है। उसी तरह परमात्म शक्ति अनुभूति का तत्व है। परोपकार के लिए यह देह मिली है। इसका पूरा-पूरा उपयोग करना चाहिए। पंन्यास विवेकसागर महाराज ने कहा कि पाप का पश्चाताप और प्रायष्चित करना चाहिए। इससे आत्मा शुद्ध बनती है।

मौसमी देवी कर रही है 31 उपवास की तपस्या
चातुर्मास समिति के संयोजक गणपतलाल पटवारी ने बताया कि मूलत: मांडवला (जिला जालोर) की मौसमी देवी 31 उपवास की महान् तप-साधना कर रही है। शनिवार को उनका आखरी उपवास होगा। इस उपलक्ष्य में चैन्नई से सैकड़ौं श्रद्धालु तपस्या के अनुमोदनार्थ नाकोड़ा तीर्थ पधार रहे हैं। शनिवार को विषेष समारोह में वह आचार्य पद्मसागर सूरीश्वर महाराज से शुभ संकल्प ग्रहण करेंगी। नाकोड़ा तीर्थ की ओर से उनका अभिनन्दन किया जाएगा। इस बार चातुर्मास होने से सैकड़ों छोटी-बड़ी तपसाधना श्रद्धालु प्रारंभ किये हैं।

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