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Friday, August 22, 2014

अहिंसा में हैं पर्युषण की चेतना : विमलसागर

बालोतरा। राष्ट्रसंत आचार्य पद्मसागरसूरीश्वर महाराज के क्रांतिकारी शिष्य मुनि विमलसागर महाराज ने कहा कि अहिंसा शुद्ध और साŸिवक भावों की गंगोत्री है। अहिंसा में ही पर्युषण महापर्व की चेतना निवास करती है। तीर्थंकर भगवान महावीर ने अहिंसा को सभी आश्रमों का हृदय और सभी शास्त्रों का रहस्य कहा है। अहिंसा सभी प्रकर के व्रतों और गुणों का पिण्डभूत सार है। हिंसा तो विनाष का मार्ग है। इस मार्ग पर चलकर किसी के भी जीवन को सुख-षांति नहीं मिल सकती। गहरे अर्थ में हिंसा सिर्फ सामूहिक पागलपन है। इसमें किसी का भी हित नहीं है। नाकोड़ा जैन तीर्थ में आठ दिवसीय पर्युषण महापर्व के शुभारंभ के अवसर पर शुक्रवार को मुनिवर ने यह बात कही। विराट् धर्म सभा में पर्युषण महापर्व के पांच कर्तव्यों पर प्रवचन देते हुए मुनि विमलसागर महाराज ने आगे कहा कि हिंसा और महावीर कभी साथ-साथ नहीं चल सकते। महावीर को पाना हैं तो अहिंसा को अपनाना होगा और हिंसा का मार्ग चुनते हैं तो महावीर को छोडऩा होगा। आज जिस बड़े पैमाने पर पशु-पक्षियों और इंसानो की हत्या हो रही है, उसे देखकर तो यही लगता है कि इंसान कहीं जानवर बन गया है। दु:ख कोई नहीं चाहता और हिंसा सिवाय दु:ख के कहीं नहीं ले जाती। मुनि विमलसागर महाराज ने आगे कहा कि देश की आजादी के समय सिर्फ 300 कत्लखाने थे। आज 39000 (उन्चालीस हजार) कत्लखाने इस देष के दुर्भाग्य का इंतजाम कर रहे हैं। मांस निर्यात कर हम धन नहीं अपना विनाष बुला रहें हैं। बेमौत मरते इन पशु-पक्षियों की आह यह देष की फिजाओं में बर्बादी का पैगाम है। निर्दोष प्राणियों को मारकर कोई सुख से जीने की कल्पना कैसे कर सकता है। अहिंसा प्राण है। अहिंसा ही मां है। अहिंसा को त्याग कर इंसान अपनी जड़ों से उखड़ जाता है। उन्हें समझकर दूर हटना होगा। जो हिंसा की वकालत करते हैं, वे गलत लोग है। मुनिवर ने कहा कि हिंसक आहार हिंसक विचार लाता है। हिंसा की व्यपकता मानवना के प्रति अपराध है। बंदूक की गोलियां और युद्ध शांति नहीं ला सकते। पहले और दूसरे विष्वयुद्ध से ये सबक सीखने चाहिए कि जंग जीने नहीं देती। जंग में सभी को खोना और पछताना पड़ता है। 100 डिग्री सेन्टीग्रेड पर पानी भाप बनकर उडऩे लगता है। 1500 डिग्री सेन्टग्रेड पर लोहा पिघल कर तरल बन जाता है। जबकि 1 हाईड्रोजन बम 10 करोड़ डिग्री सेन्टग्रेड गर्मी पैदा करता है। ऐसे 50 हजार से अधिक बम बनाये जा चुके हैं। ये बम अनाज उगाने के काम नहीं आने वाले हैं। एक से अधिकबार इस समग्र पृथ्वी का नाष कर सकें इतनी भयानक क्षमता इन बमों के पास है। हम सभी मौत के मुंह पर बैठे हैं। निष्चित तौर पर अहिंसा और क्षमापना के बिना अब शांति से जीना असंभव है।
मुनिवर ने आगे कहा कि अहिंसक मनुष्य ही क्षमावान् हो सकता है। दूसरों की भूलों को माफ कर देना वीर ही समझते है। क्षमापना में मानवता का संगीत है। बुरे के साथ बुरा बनना तो बचकानापन है। दुनिया में दो प्रकार के मूर्ख होते हैं: एक वे जो अपनी भूलों के लिए क्षमा नहीं मांगते और दूसरे वे जो भूल स्वीकार कर लेने पर भी सामने वाले को माफ नहीं करते। आचार्य पद्मसागरसूरीष्वर महाराज ने कहा की आजादी के बाद हिंसा बढ़ी है। मुगलकाल में जैनाचार्य हीरविजयसूरि ने बादषाह अकबर को समझाकर 6 माह तक समग्र भारत में जीवहिंसा प्रतिबंधित करवायी थी। बादषाह जैनाचार्य के उपदेषों से प्रभावित होकर शाकाहारी बन गया था। हीरविजयसूरि महाराज ने हिन्दू बने रहने के लिए दिया जाता जजिया वेरा (टेक्स) अकबर को समझाकर माफ करवा दिया था। आज की राजनीति में सरकारों से व्यापक जनहित के काम करवाना भी दुभर है। उन्होंने कहा कि अभावग्रस्त बन्धुओं की देखभाल करना हर धार्मिक मनुष्य का परम कर्तव्य है। अभावग्रस्त को जरूरी सहायता पहुंचाना धर्म उपासना की पहली सीढ़ी है। जो दीन-दु:खी या धर्मबन्धुओं को सहयोग नहीं करता, वह भगवान की क्या साधना करेगा! उन्होंने कहा कि क्षमा सारी धर्म-आराधना का सार है। जो क्षमा करता है उसी की उपासना सफल होती है। पशु क्षमा करना नहीं जानते। मनुष्य के पास ही यह संभावना है। आचार्य पद्मसागरसूरीष्वर महाराज ने आगे कहा कि वार्षिक प्रयष्चित के रूप में सभी को तीन उपवास करने चाहिए। प्रायष्चित व पश्चाताप पापों को धोने का अमोघ उपाय है। धर्म जागरण के लिए सामूहिक रूप से मंदिरों के दर्षन को जाना चाहिए। इससे सामूहिक पुण्य का अनुबंध होता है। विधि विधान पूर्वक पूजा-अर्चना करनी चाहिए। चातुर्मास समिति के संयोजक गणपतचन्द पटवारी ने बताया कि चार हजार से अधिक श्रद्धालु यहां पर्युषण महापर्व की आराधना के लिए एकत्रित हुए है। दोनों समय प्रतिक्रमण के द्धारा पश्चाताप व प्रायाष्चित का विधान होता है। सामूहिक देवदर्षन, पूजन व गुरूवंदना के कार्यक्रम होते है। दो हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने निराहार रहकर शुक्रवार को उपवास की तपस्या की।

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