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Tuesday, August 19, 2014

ज्ञान देता है जीने की कला : पद्मसागरसूरि

बालोतरा। राष्ट्रसंत आचार्य पद्मसागरसूरीश्वर महाराज ने कहा कि ज्ञान आत्मा का मुल गुण है। ज्ञानहीन मनुष्य पशुतुल्य है। ज्ञान से ही जीवन जीने की कला आती है। ज्ञान की साधना जीवन का ध्येय होना चाहिए। आत्मा अनंत ज्ञानमय चेतना है। सिर्फ मन पर लगी अज्ञान की कालिमा हटाने की आवश्यकता है। लालटेन कितनी ही तेजी से जलायें, यदि उस पर कांच का गोला कालिमा से काला हो चुका है तो प्रकाश बाहर नही आ सकेगा। इसी तरह अज्ञान का आवरण भी चेतना के प्रकाश को बाहर नहीं आने देता।
नाकोड़ा जैन तीर्थ में मंगलवार को विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि जो आसक्तियों से मुक्त करे वही खरा ज्ञान है। जैन परंपरा में ज्ञान से पहले ‘सम्यक्‘ शब्द जोड़ा जाता है। अकेला ज्ञान जैन परंपरा में मान्य नहीं है। ज्ञान तो कई तरह का होता है। लेकिन जो मनुष्य को पतन के मार्ग से बचाये और धर्म के मार्ग पर प्रवृत करें, वह सम्यक् ज्ञान है। इधर-उधर की जानकारियों को जैन परंपरा सम्यग्ज्ञान नहीं मानती। उन्होंने कहा कि बुद्धि के दुरूपयोग को रोकना चाहिए। विचारों की विकृति जीवन को विनाश के पथ पर ले जाती है।
क्रांतिकारी मुनि विमलसागर महाराज ने कहा कि मृत्यु जीवन का दुसरा पक्ष है। जन्म उसका पहला पक्ष है। जीवन चाहते हैं तो मृत्यु भी अज्ञानता है। समाधिमय मृत्यु जीवन की सफलता है। ऐसी मौत नसीब वालों को मिलती है।
मुनिवर ने कहा कि आसक्ति शांति से न तो जीने देती है और न मरने देती है। लोग धन के लिए जीवन बर्बाद करते है। जीवन के लिए धन नहीं, धन के लिए जीवन लग रहा हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण हैं।

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