सीमावर्ती इलाके में पानी के लिए हाहाकार,प्रसाशन कागजो मे पिला रहा पानी
यहां पानी के बगैर तड़फ-तड़फ कर मर जाएंगी हजारों गायें
ग्राउंड रिपोर्ट@ भैरूसिंह भाटी तेजपाला
जैसलमेर।
रेगिस्तान में तेज चिलचिलाती धूप, धूल भरी आंधियां और गर्मी का पारा 50 के पार हो जाता है। फिर भी घर-बार चलाने के लिए पशुपालक कड़ी मेहनत कर विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारते है और अपने स्तर पर ही कडी मेहनत कर परंपरागत जल स्त्रोत (कुएं) से पशुधन के लिए पानी की व्यवस्था कर देते है। पानी के अभाव में यहां लोगों की जान पर बन आती है। पर इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। इन मूक प्राणियो के लिए शाशन-प्रसाशन व नेता कोई भी मदद को आगे नहीं आता है।
जीहां हम कर रहे है इन भयावह हालातो को बयान करने की कोशिश। सीमावर्ती इलाके में वर्तमान समय में पानी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। पानी की समस्या लोगों के लिए आफत बनी हुई। अपना हल्क तर करने के लिए लोगों के साथ-साथ पशुधन को भटकना पड़ रहा है। हालांकि बोर्डर के विकास के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च किए जाते है पर पेयजल स्त्रोंतो के पुख्ता प्रबंध नहीं किए गए। अब नहरों में भी लंबा क्लोजर है, जिसके चलते सीमावर्ती इलाके में किसानों व पशुपालको को अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी तक नसीब नहीं होगा। तस्वीर डराने वाली हो जायेगी पर क्या नेताओं, अफसरों को इन मूक प्राणियो पर दया आएगी?बोर्डर इलाके में अप्रेल, मई, जून में हजारों गाय पानी के अभाव में तडफ-तडफ कर मरने के कगार तक पहुच जायेगी। प्रसाशन ने सीमावर्ती इलाके में रहने वाले लोगों व पशुधन के लिए नहरों में लंबे क्लोजर से पहले पानी की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं की है। साधा नहर की 78 आरडी पर मात्र एक डिग्गी के भरोसे हजारों का पषुधन प्यास बुझाने के लिए निर्भर रहेगा। इससे 8 से 10 किलोमीटर के क्षेत्र में पानी का कोई स्त्रोत नहीं है।
इनकी कोई नहीं सुनता-
पुरानी भुटों वाली चैकी पर शहीद पूनमसिंह जी के मंदिर पर हाल ही में आयोजित हुए रात्रि जागरण के कार्यक्रम में पषुपालकों व किसानों की व्यथा सुनकर बड़ा दर्द हुआ। इस बोर्डर इलाके में हजारों गायों के साथ पषुधन विचरण करता है, पर इनके पीने के लिए पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं है। लोगों का कहना था कि अब नहरों में भी लंबा क्लोजर है और ऊपर से अप्रेल, मई, जून में देह को जला देने वाली भयंकर गर्मी व लू के कारण हजारों गायें तडफ-तडफ कर मर जाएगी। सीमा क्षेत्र के तेजपाला, रायमला, नगों की ढाणी, नगा, सेउवा, राघवा, साधना, रामगढ इलाके विभिन्न क्षेत्रों से लेकर तनोट तक के सीमावर्ती इलाके के इन गांवों के लोग पषुओं पर अपनी आजीविका चलाते है। पर पेयजल की समस्या गर्मी के सीजन में यहां के लोगों के लिए आफत बन जाती है। विधायक, सांसद यहां तक जिले के आला अफसर कभी इनकी इस बड़ी समस्या पर चर्चा तक नहीं करते है। इनकी आवाज को उठाने वाला कोई नहीं है।
वातानुकूलित कक्षा में बैठने वाले अफसर व नेता क्या जानें इनका दर्द-
एयरकंडीषनर में बैठकर मात्र मीटिगों में व्यस्त रहने वाले अफसरों व नेताओं को क्या पता कि पषुपालकों को रेगिस्तान की गर्मी में रहकर अपना जीवनयापन कितनी कठोर तपस्या व परेषानियां झेलकर करना पड़ता है। बड़ी शर्मनाक बात यह है कि जिला स्तर की बैठकों में कभी इनकी समस्याओं पर चर्चा तक नहीं की जाती है। यहां के अफसरों व नेताओं ने आज दिन तक सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले पषुपालकों की कोई खैर-खबर तक नहीं पूछी, उनके हाल-चाल नहीं जाने। भुटा माईनर से लेकर पुरानी भुटों वाली चैकी व पूरे इलाके में पेयजल के लिए कोई पेयजल का स्त्रोत नहीं है। हजारों पषु हल्क तर करने के लिए दर-दर की ठोकरे खाकर पानी की तलाष मंे भटकते रहते है और अंत में तडफ-तडफ कर मर जाते है।
करोड़ों का बजट स्वाहा पर पेयजल की व्यवस्था नहीं
सीमावर्ती इलाके के विकास के लिए बीएडीपी अंतर्गत करोड़ों का बजट अन्य कार्यो में स्वाहा किया जाता है। पर पषुओं के पेयजल व्यवस्था के लिए कोई स्त्रोत नहीं बनाये गये है। जिसके चलते सीमावर्ती इलाके में रहने वाले लोगों को परेषानी का सामना करना पड़ता है। यहां के किसानों व पषुपालकों ने विधायक व जिला अधिकारियों से सीमा इलाके में पषुओं के लिए पेयजल व्यवस्था करने के लिए डिग्गी निर्माण, टांका, पषुखेली, ट्यूबवेल तथा टैंकरों के मार्फत पानी की सप्लाई आदि के जरिये हजारों पषुधन को बचाने की पुरजोर मांग की है।
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