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Friday, March 9, 2018

मेले हमारी सांस्कृतिक धरोहर-श्री परशुराम गिरी जी महाराज

मेले हमारे सांस्कृतिक धरोहर हैः श्री परशुरामगिरि जी महाराज
- श्री मठ कानाना में धर्मसभा का आयोजन हुआ।
- संत-महात्माओं ने व्यसन मुक्त जीवन जीने के साथ-साथ स्वस्थ समाज निर्माण में भागीदारी निभाने तथा सामाजिक सरोकार व आपसी भाईचारा कायम रखने की प्रेरणा दी।
बालोतरा।
निकटवर्ती कानाना गांव स्थित श्री मठ पर शितला सप्तमी के उपलक्ष में धर्मसभा का आयोजन हुआ। इस दौरान साधु-संतों ने उपस्थित भक्त-भाविकों से वर्तमान परिपेक्ष में व्यसन मुक्ति के साथ-साथ धर्म की रक्षार्थ हर समय तत्पर रहते हुये समग्र स्वस्थ समाज निर्माण में भागीदारी निभाने का आव्हान किया।
श्री पंचदशनाम जूना अखाडा़ हरिद्वार के अंतर्राष्ट्रीय मंत्री, श्री गणेश आश्रम रामपुरा (रोहिट) व श्री मठ कनाना के गादीपति श्री महंत परशुरामगिरि जी महाराज ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि सभी धर्म एक-दूसरे के पूरक है। सभी धर्मों के लोग आपसी भाईचारा कायम रखते हुये सौर्हादपूरण वातावरण में अपना जीवन जियें। उन्होंने कहा कि मेले हमारे सांकृतिक धरोहर है। उन्होंने  विभिन्न प्रकार के व्यसनों में लिप्त युवा पीढी़ को व्यसन मुक्त जीवन जीने सीख देते हुये समग्र समाज निर्माण में भागीदारी निभाने का आव्हान किया। इस दौरान बह्मधाम आसोतरा के गादीपति श्री तुलछाराम जी महाराज ने परशुरामगिरि जी महाराज को मेले की शुभकामना देते हुए श्री मठ के गादीपति द्वारा किये जा रहे मठ के विकास, शिक्षा व नशामुक्ति आदि समाज सुधारक कार्यों की सराहना की। वहीं तारातरा मठ के मठाधीश स्वामी प्रतापपुरी जी महाराज ने कहा कि मेले हमारी सतातन व पुरातन संस्कृति के प्रतीक हैं। मेले हम सभी को एक-दूसरे को प्रेमपूरक बनने में अहम् भूमिका निभाते है। इस अवसर पर परेऊ मठ के महंत ओमकारभारती जी महाराज, जूना आखाडा़ के उपाध्यक्ष श्री अर्जुनभारती जी महाराज, महामण्डलेश्वर निर्मलदास जी महाराज, श्री कैलाशपुरी जी देसूरी, ऊमरलाई के मठाधीश महंत रामानंद सरस्वती जी महाराज, चेण्डा के श्री राजाराम आंजणी माताधाम के भक्तराज श्री पदमाराम जी महाराज, श्री सुभद्रा माताजी व मामाजी महाराज का धाम सड़लानाडा के गादीपति श्री भूराराम जी महाराज, डंडाली के महंत श्री चेतनानंद सरस्वती जी महाराज, मीठा मठ के महंत श्री उम्मेदगिरि जी महाराज व कृष्ण भक्त महेन्द्रसिंह सहित सैकडो़ं श्रद्धालु मौजूद थे। इससे पूर्व प्रातःकालीन शुभवेला में वैदिक आचार्य पियूष जोशी, विद्वान पंडित नरपत शर्मा व किशन ने वैदिक मंत्रोचारण के बीच विधि-विधान पूर्वक माता शितला माताजी की पूजा-अर्चना की।

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