अस्पताल में आने वाले मरीज डॉक्टरों के चक्कर लगाने को मजबूर,आखिरकार जाना पड़ता है उनके घर,महिला चिकित्सक (गायनिक) की नियुक्ती नहीं होने से प्रसूताएं बेहाल
भगाराम पंवार (9887119003)
बालोतरा। उपखंड का एक मात्र सरकारी चिकित्सालय डॉक्टरों की कमी से झूझ रहा है तो कुछ डॉक्टर के समय पर अस्पताल नहीं आने से मरीजों के हाल बेहाल है। राजकीय नाहटा अस्पातल में डॉक्टर की समय पर नहीं आने की शिकायत यहा आने वाला हर कोई मरीज करता है,उनका कहना है डॉक्टर अपने निजी स्वार्थ के चलते समय पर नहीं आते है और हमें मजबूरन उनके घर पर जाना पड़ता हैं या निजी अस्पतालों की रूख करने पर मजबूर होना पड़ता हैं। अस्पताल में डॉक्टर 10 बजे के बाद आते है और इनडोर मरीजों का चैकअप कर चले जाते है जिससे आउटडोर में आने वाले ग्रामीण क्षेत्रों के मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पूरे उपखंड का एक मात्र सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल होने के बावजूद भी यहा महिला चिकित्सक(गायनिक) नहीं है। अस्पताल में आने वाली महिला मरीजों व प्रसूताओं का कहना है कि हमें प्रसव व गर्भावस्था के दौरान होने वाली बिमारियों के संबंध में अस्पताल में कोई जानकारी नहीं मिलती है,इसी मजबूरी में हमें निजी अस्पतालों की ओर रूख करना पड़ रहा है। अस्पताल प्रशासन की लापरवाहीं व पीएमओं की अनदेखी से अस्पताल खुद आज वेंटीलेटर पर हैं।
डॉक्टर नहीं आते समय पर
अस्पताल में डॉक्टरों के समय पर नहीं आने वाली समस्या का सबसे बुरा असर ग्रामीण व शहरी क्षेत्र से आने वालें मरीजों पर पड़ता हैं। इनमें प्रमुख बच्चों की बिमारियों का हैं। अस्पताल में ड्यूटी पर तैनात दो शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ नंदलाल गुप्ता व डॉ कमल मूंदड़ा अस्पताल में कम और अपने घर पर मरीजों को ज्यादा समय दे रहे हैं,जिससे मरीजों को मजबूरी में उनके घरों की ओर रूख करना पड़ रहा है। डॉक्टरों के ऐसे रवैये से सरकारी अस्पताल का फायदा नहीं मिल पाता है ओर न हीं नि:शुल्क दवा व जांच योजना का। ये डॉक्टर अपने निजी स्वार्थ की खातिर मरीजों की घर पर देखभाल कर मुनाफा कमाने की जुगत में रहते है तो मेडिकल व जांच लैब वाले उनकी मजबूरी का।
अस्पताल में महिला चिकित्सक नहीं
उपखंड का सबसे अस्पताल होने के बावजूद भी यहां महिला चिकित्सक (गायनिक) नहीं है जिसका खामियाजा ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों से आने वाली महिलाओं मरीजों व प्रसूताओं को भुगतना पड़ रहा हैं। वहीं प्रसूती कक्ष में कार्यरत स्टॉफ महिलाओं से अच्छे से पेश नहीं आता है उनसे समय पर डिलीवरी करवाने के नाम पर रूपये भी वसूले जाते हैं। अगर कोई महिला रूपये नहीं दे पाती है तो उन्हे ऑपरेशन का भय दिखाकर जोधपुर का रास्ता दिखा दिया जाता है। महिला चिकित्सक का पद पिछले एक साल से ज्यादा समय से रिक्त पड़ा है जिसकों लेकर जनप्रतिनियों ने भी पैरवी नहीं की जिससे महिलाओं को निजी अस्पतालों की ओर रूख करना पड़ता है एवं निजी अस्पताल मोटा मुनाफा कमाने में लगे हुए हैं।
बंद पड़ा शिशु रोग विशेषज्ञ का रूम।
खाली पड़ा जनरल डॉक्टर का रूम।
माकूल हो सफाई व्यवस्था
अस्पताल में सफाई व्यवस्था आए दिन चरमरा जाती है जिससे मरीजो को दुर्गंध के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इनडोर मरीजों ने बताया कि अस्पताल के शौचालयों के हालात किसी नरक से कम नहीं है सफाई कर्मचारी समय पर सफाई नहीं करते है,जिससे शौचालय गंदगी से अटे पड़े है।
लपकों पर लगे लगाम
अस्पताल में आने वाले मरीजों के सबसे बड़ी परेशानी लपके बने हुए है जो निजी अस्पतालों में मरीजों को ले जाने के गोरखधंधे को अंजाम देते हैं। अस्पताल प्रशासन की मिलीभगत से खुलेआम ये लपके दिनभर अस्पताल के अंदर,इनडोर में भर्ती मरीजों के वार्ड के आस-पास व प्रसूती कक्ष के बाहर खड़े रहते है ओर मरीजों को सरकारी अस्पताल की बदहाली बताकर निजी अस्पतालों में ले जाते है,इससे इन लपकों को निजी अस्पतालों की ओर से कमीशन भी दिया जाता है।
नि:शुल्क दवा व जांच को तरसते मरीज
मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा व जांच योजना का फायदा चाहकर भी नहीं मिल पाता है। अस्पताल के बाहर स्थित मेडिकल स्टोर व दवा काउंटर के ठेकेदार व अस्पताल कार्मिकों की सांठगांठ के चलते मरीजों दवाईयां उपलब्ध होने के बावजूद भी नहीं दी जाती है ओर उन्हे कमीशन के लालच में बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है।
भगाराम पंवार (9887119003)
बालोतरा। उपखंड का एक मात्र सरकारी चिकित्सालय डॉक्टरों की कमी से झूझ रहा है तो कुछ डॉक्टर के समय पर अस्पताल नहीं आने से मरीजों के हाल बेहाल है। राजकीय नाहटा अस्पातल में डॉक्टर की समय पर नहीं आने की शिकायत यहा आने वाला हर कोई मरीज करता है,उनका कहना है डॉक्टर अपने निजी स्वार्थ के चलते समय पर नहीं आते है और हमें मजबूरन उनके घर पर जाना पड़ता हैं या निजी अस्पतालों की रूख करने पर मजबूर होना पड़ता हैं। अस्पताल में डॉक्टर 10 बजे के बाद आते है और इनडोर मरीजों का चैकअप कर चले जाते है जिससे आउटडोर में आने वाले ग्रामीण क्षेत्रों के मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। पूरे उपखंड का एक मात्र सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल होने के बावजूद भी यहा महिला चिकित्सक(गायनिक) नहीं है। अस्पताल में आने वाली महिला मरीजों व प्रसूताओं का कहना है कि हमें प्रसव व गर्भावस्था के दौरान होने वाली बिमारियों के संबंध में अस्पताल में कोई जानकारी नहीं मिलती है,इसी मजबूरी में हमें निजी अस्पतालों की ओर रूख करना पड़ रहा है। अस्पताल प्रशासन की लापरवाहीं व पीएमओं की अनदेखी से अस्पताल खुद आज वेंटीलेटर पर हैं।
डॉक्टर नहीं आते समय पर
अस्पताल में डॉक्टरों के समय पर नहीं आने वाली समस्या का सबसे बुरा असर ग्रामीण व शहरी क्षेत्र से आने वालें मरीजों पर पड़ता हैं। इनमें प्रमुख बच्चों की बिमारियों का हैं। अस्पताल में ड्यूटी पर तैनात दो शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ नंदलाल गुप्ता व डॉ कमल मूंदड़ा अस्पताल में कम और अपने घर पर मरीजों को ज्यादा समय दे रहे हैं,जिससे मरीजों को मजबूरी में उनके घरों की ओर रूख करना पड़ रहा है। डॉक्टरों के ऐसे रवैये से सरकारी अस्पताल का फायदा नहीं मिल पाता है ओर न हीं नि:शुल्क दवा व जांच योजना का। ये डॉक्टर अपने निजी स्वार्थ की खातिर मरीजों की घर पर देखभाल कर मुनाफा कमाने की जुगत में रहते है तो मेडिकल व जांच लैब वाले उनकी मजबूरी का।
अस्पताल में महिला चिकित्सक नहीं
उपखंड का सबसे अस्पताल होने के बावजूद भी यहां महिला चिकित्सक (गायनिक) नहीं है जिसका खामियाजा ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों से आने वाली महिलाओं मरीजों व प्रसूताओं को भुगतना पड़ रहा हैं। वहीं प्रसूती कक्ष में कार्यरत स्टॉफ महिलाओं से अच्छे से पेश नहीं आता है उनसे समय पर डिलीवरी करवाने के नाम पर रूपये भी वसूले जाते हैं। अगर कोई महिला रूपये नहीं दे पाती है तो उन्हे ऑपरेशन का भय दिखाकर जोधपुर का रास्ता दिखा दिया जाता है। महिला चिकित्सक का पद पिछले एक साल से ज्यादा समय से रिक्त पड़ा है जिसकों लेकर जनप्रतिनियों ने भी पैरवी नहीं की जिससे महिलाओं को निजी अस्पतालों की ओर रूख करना पड़ता है एवं निजी अस्पताल मोटा मुनाफा कमाने में लगे हुए हैं।
बंद पड़ा शिशु रोग विशेषज्ञ का रूम।
खाली पड़ा जनरल डॉक्टर का रूम।
माकूल हो सफाई व्यवस्था
अस्पताल में सफाई व्यवस्था आए दिन चरमरा जाती है जिससे मरीजो को दुर्गंध के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इनडोर मरीजों ने बताया कि अस्पताल के शौचालयों के हालात किसी नरक से कम नहीं है सफाई कर्मचारी समय पर सफाई नहीं करते है,जिससे शौचालय गंदगी से अटे पड़े है।
लपकों पर लगे लगाम
अस्पताल में आने वाले मरीजों के सबसे बड़ी परेशानी लपके बने हुए है जो निजी अस्पतालों में मरीजों को ले जाने के गोरखधंधे को अंजाम देते हैं। अस्पताल प्रशासन की मिलीभगत से खुलेआम ये लपके दिनभर अस्पताल के अंदर,इनडोर में भर्ती मरीजों के वार्ड के आस-पास व प्रसूती कक्ष के बाहर खड़े रहते है ओर मरीजों को सरकारी अस्पताल की बदहाली बताकर निजी अस्पतालों में ले जाते है,इससे इन लपकों को निजी अस्पतालों की ओर से कमीशन भी दिया जाता है।
नि:शुल्क दवा व जांच को तरसते मरीज
मुख्यमंत्री नि:शुल्क दवा व जांच योजना का फायदा चाहकर भी नहीं मिल पाता है। अस्पताल के बाहर स्थित मेडिकल स्टोर व दवा काउंटर के ठेकेदार व अस्पताल कार्मिकों की सांठगांठ के चलते मरीजों दवाईयां उपलब्ध होने के बावजूद भी नहीं दी जाती है ओर उन्हे कमीशन के लालच में बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है।
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