पेटकॉक खतरनाक -एनजीटी
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पर्यावरणीय कारणों से
इंडस्ट्री में ईंधन के तौर पर काम में आ रहे पेटकोक को खतरनाक बताया था।
एनजीटी ने इस संबंध में पिछले दिनों इसके उपयोग को प्रतिबंधित करने के लिए
राज्य सरकारों को निर्देश दिए थें। उधर, राजस्थान में इसको प्रतिबंधित नहीं
करने का फैसला किया है।
मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे के निर्देश पर पर्यावरण विभाग ने निर्णय लिया है कि ईंधन के रुप में पेटकोक को राज्य में प्रतिबंधित करने की आवश्यकता नहीं है। यह निर्णय नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दिनांक 16 मई 2017 को आए फैसले के परीक्षण और राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मण्डल (आरएसपीसीबी) से परामर्श के बाद लिया गया। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री से गत 13 जून को राजस्थान स्मॉल इंडस्ट्रीज कॉर्पोरेशन के चेयरमैन मेघराज लोहिया के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मण्डल ने मुलाकात की थी। उन्होंने पेटकोक पर प्रतिबंध से उद्योगों के सामने आने वाली समस्याओं की जानकारी दी।
पर्यावरण विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश की पर्यावरणीय संरचना को देखते हुए पेटकोक को प्रतिबंधित नहीं करने का निर्णय लिया गया है। इस निर्णय से प्रदेश की हजारों लघु एवं मध्यम इकाइयों को राहत मिलेगी। पेटकोक के इस्तेमाल के बाद इससे सामान्य कोयले की तुलना में कम राख निकलती है। राज्य के वातारण में धूल कण ज्यादा होने के कारण कम राख निकालने वाले पेटकोक के इस्तेमाल को पर्यावरण के लिए तुलनात्मक रूप से कम हानिकारक माना गया है। चूना भट्टों से लेकर सीमेंट, टेक्सटाइल आदि उद्योगों में ईंधन के रूप में पेटकोक का उपयोग किफायती साबित होगा। पेटकोक का उपयोग करने के लिए औद्योगिक इकाइयों को आरएसपीसीबी से अनुमति लेनी होगी।
इससे पहले एनजीटी ने 16 मई को उन उद्योग इकाइयों को तत्काल बंद करने का आदेश दिया है जो बिना अनुमति पेट्रोलियम कोक (पेटकोक) का ईंधन के तौर पर इस्तेमाल कर रही हैं। एनजीटी ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और सभी राज्यों को निर्देश दिया कि वे दो महीने के भीतर पेटकोक को पर्यावरण कानूनों के हिसाब से एक अनुमति प्राप्त ईंधन की श्रेणी में रखे जाने के संबंध में फैसला लें।
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