रानी विक्टारोरियां की रसोई का स्वाद बढाने वाले पचपदरा के नमक उद्योग का स्वाद मिटने के कगार पर
कभी था विषाल साम्राज्य, आज उजाड़ में बहा रहा आंसु
बालोतरा
किसी जमाने में सात समुन्द्र पार रानी विक्टोरियां की रसोई में भारत देश की धाक जमाने वाले पचपदरा के नमक का स्वाद अब कसैला हो चला है। समय की मार ओर सरकार की अनदेखी ने पचपदरा के नमक उद्योग पर संकट के बादल खड़े कर दिये है। आज पचपदरा में नाम मात्र की ही नमक की खाने चालु हालात में है। नमक उत्पादन के नष्ट होने से नमक उत्पादको के सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है। सरकार पचपदरा के नमक उद्योग को बचाने के लिये रूचि नही दिखा रही है।
पश्चिमी राजस्थान के बाड़मेर जिले के बालोतरा कस्बे से 12 किमी. दूर पचपदरा शहर है। पुराने समय में यह समृद्ध व्यवसायिक शहर था। ब्रिटिश काल में लगभग सभी सरकारी कार्यालय भी यहीं पर थे। यहां पचपदरा में शुरू से ही जैन समाज और खारवालों की बस्ती है। सदियों से नमक उत्पादन का कार्य खारवाल समाज द्वारा ही किया जाता है। प्राचीन ग्रन्थों को देखें तो यहां प्रथम सदी वि.सं. में भी नमक उद्योग फलीभूत था। उस समय पचपदरा के निकट खेड़ या क्षीरपुर एक विशाल राज्य नगर राजधानी थी।
वर्तमान समय में पचपदरा शहर में 10 किमी. आगे पचपदरा साल्ट रेल्वे स्टेशन है। नमक कारोबार बहुत कम होने से सन् 1993 से पचपदरा शहर और पचपदरा सॉल्ट तक जाने वाली सवारी गाड़ी और नमक के लिए गुड्स ट्रेन बेन कर दी गई।
बालोतरा से पचपदरा शहर एवं पचपदरा सॉल्ट तक यह छोटी रेल लाईन पचपदरा के एक व्यवसायी सेठ गुलाबचंद ने बिछाई थी। यह रेल 1930 में बिछाई गयी थी। नमक को पूरे भारत भर में पहुंचाने का ठेका सेठ गुलाबचंद के पास था। बाद में रेल्वे और अन्य चोर गिरोहों ने पटरियां उखाड़ ली। रेल्वे और सेठ गुलाबचंद के वारिसों का रेल्वे जमीन और पटरियों को लेकर अभी तक अदालत में मामला चल रहा है।
नमक व्यवसाय:- पचपदरा सॉल्ट में ब्रिटश काल में 600 से अधिक नमक की खदानें थी। कालांतर में जोजरी नदी नहीं आने और वर्षा की कमी से नमक खदानें पानी से नहीं भरने के कारण नमक उत्पादन भी कम होने लगा है। खारवाल नमक उत्पादक संघ के अध्यक्ष पारसमल माली का कहना है कि वर्तमान में ब्रिटिश काल की तुलना में 10 प्रतिशत नमक ही मिल पाता है। इस समय मुश्किल से 150 से 200 नमक खदानें चालु हालत में है, लेकिन 90 प्रतिशत उत्पादन घटने के बावजूद भी यहां खदानों में एक से डेढ़ लाख रूपये तक का उत्पादन होता है। यह नमक खदाने पचपदरा सॉल्ट में बाड़मेर सड़क मार्ग नेशनल हाईवे 112 के दोनों ओर हैं।
यहां का नमक बहुत उत्तम स्तर एवं जैविक होता था। कुछ पुराने रिकॉर्ड देखने पर पता चलता है कि यह नमक दक्षिण-पश्चिम में सिंध क्षेत्र (पाक) और आगरा-कलकत्ता तक यह नमक रेलमार्ग द्वारा पहुंचता था।
हीर खानों या हीरक खानों का नमक:- यह नमक बहुत ही उत्तम स्तर का होता था। इन खदानों में यहां की कांटेदार झाड़ियाँ मौराली काटकर खदानों में जमाई जाती थी। ज्यूं-ज्यूं पानी सूखता है तब मौराली के ऊपर क्रिस्टल की तरह चमकदार, स्वादिष्ट और कई आयुर्वेदिक दवाओं में काम आने वाला नमक पैदा होता था। यह नमक आम आदमी की पहुंच से दूर थी, इसका मूल्य भी अधिक था। बड़े सेठ-साहुकारों, जागीरदारों और कहा जाता है कि महारानी विक्टोरिया और वाजिद अली शाह, आशफ दौल्ला लखनऊ नवाब के बावर्ची खाने तक इस नमक की पहुंच थी।
सन् 1887 से मारवाड़ जोधपुर से बालोतरा वाया बाड़मेर होते हुए मीरपुर सादोवल्ली तक यह रेल लाईन बिछायी गयी थी।
पूर्व में यह नमक बैलगाड़ियों द्वारा बालोतरा पहंुचता था और उसके बाद रेल मार्ग से पूरे देशभर में यह नमक पहुंचता था। बालदों द्वारा भी इस नमक का लदान होता था। अंग्रेजों के नमक एकाधिकार से पूर्व इस क्षेत्र के कई बड़े जमींदारों द्वारा बिना चूंगी दिये जबरन नमक ले जाया जाता था।
सांभर-डीडवाना की तुलना में यहां का नमक श्रेष्ठ माना जाता था। सन् 1930 में पचपदरा सॉल्ट तक रेल मार्ग बनने के बाद नमक की लदान पचपदरा सॉल्ट स्टेशन से सीधा होने लगा।
ब्रिटिश काल में नमक का मुख्यालय जयपुर था, जहां नमक विभाग का कमिश्नर बैठता था और सांभर में जनरल मैनेजर की पोस्ट थी।
सॉल्ट की नमक ऑफिस और आवास:- पचपदरा सॉल्ट से डेढ़ किमी. पूर्व मुख्य सड़क मार्ग से पूर्व-दक्षिण की ओर एक ऊँचे टीले की ओर टूटी-फूटी ग्रेवल सड़क जाती हैं, जो अब कई जगह से रेत से अटी पड़ी है। यहां सर्वप्रथम एक विशाल डिप्टी सुपरीडेंट ऑफ सॉल्ट का कार्यालय है। यह बेहद शानदार इमारत ऑफिस कम और शानदार डाक बंगला या रेस्ट हाऊस जैसी नजर आती है।
यह इमारत यहां के पत्थरों को शानदार ढंग से तराशकर बनायी गयी है। लगभग चार फुट ऊँचा प्लेटफॉर्म लेकर फिर उसके ऊपर इस इमारत का निर्माण किया गया है और मुख्य इमारत के चारों ओर यह शानदार बरामदा बना हुआ है। इमारत का निर्माण इस ढंग से किया गया है कि इसमें गर्मियों में गर्मी का अहसास नहीं होता। इस ऑफिस के सामने ही सुपरीडेंट का आवास बना हुआ है, वह भी बेहद शानदार है। इस इमारत के सामने ही एक छोटी ऑफिस बनी हुई है, जिस में एक ओर छोटी खिड़की है, संभवतः यहां कैशियर बैठता होगा और मजदूरों का भुगतान करता होगा।
सॉल्ट में लगे एक ऑफिसर द्वारा नमक की तुलाई वजन करने के बाद उन्हें एक टोकन पर सील लगाकर रकम लिखी जाती थी, जिसका यहां से भुगतान होता था और अन्य सरकारी कर्मचारियों के वेतन का भुगतान भी यहीं से होता था।
ट्रेजरी स्ट्रोंग रूम:- यह 10 ग 10 फीट का बहुत ही मजबूत बना कमरा है। जिस पर भारी भरकम लोहे का दरवाजा और पीछे मजबूत जाली लगी हुई है। मुख्य दरवाजे पर इंग्लैण्ड मैड 5 किग्रा. का भारी भरकम पीतल का ताला लगा होता था, जो विगत दस वर्षों पूर्व था। बाद में कोई काट कर ले गया। दीवारें-फर्श और छत मजबूत लोहे के सरियों, कंकरीट और चूने से निर्मित है। यहां 24 घण्टे सुरक्षा गार्ड का पहरा लगा होता था। ट्रेजरी रूम के फर्श पर मजबूत गोलाकार भूमिगत स्ट्रोंग रूम बना हुआ था, जिस पर भी भारी दरवाजा लगा होता था और दो ताले लगते थे। स्ट्रोंग रूम से भारी भरकम सेल्फ को चार लोगांे की मदद से लोहे की गरारी से उस तिजोरी को वापिस अण्डर ग्राउण्ड स्ट्रोंग रूम में रखकर ऊपर दो ताले जड़े जाते थे। आर्मड राइफलें भी अन्दर रहती थी और बाहर राइफलधारी गनर हर वक्त सख्त पहरे पर रहती थी।
पुलिस बेरेक्स एवं पुलिस अधिकारी आवास:- ट्रेजरी रूम के निकट पूर्व की और दो लम्बी पुलिस बेरेक्स बनी हुई थी और पुलिस अधिकारियों के लिए दो शानदार आवासीय भवन बने हुए थे। नमक महकमे के एक पुलिस इंस्पेक्टर की कब्र जो यहां से तीन किमी. दूर है। जिस पर उर्दु मंे लिखा है 786 - यादगार तारिख अरत हाल वहो हंदा सैयद इशारत मसयीन तमारक इंस्पेक्टर तारीख 13वीं सबर 1919 को फौत हुआ। तामीर तुरबत मिस्टर जी.डब्ल्यू.सी.जनाब लैली हसआ, याद करा स्टेट कमीशनर साहब ने करायी....फक्त.....। कुछ लोगों का कहना है कि यहां पहले कुछ कब्रें क्रिश्चियन की भी थी, जो बाद में तोड़ दी गई है। जबकि इस ईसाई कब्रिस्तान मुख्यालय से 4 किमी. से अधिक उत्तर पूर्व में है, जिसमें 1860 से लेकर 1880 और उसके बाद की कब्रें हैं। चारों ओर छोटी दीवार है, आगे लोहे का गेट है।
कुछ कब्रें रेत आ जाने से नजर नहीं आती। कुछ पर शलीब और ऊपर का यादगार पत्थर नहीं है। बाहर की ओर एक पत्थर पर च् 25 खुदा है, यह शायद सॉल्ट का कोड था, क्योंकि कई इमारतों पर भी च् 25 स्टोन लगा हुआ है। घुड़शाला, सफाई कर्मचारियों के आवास यहां होर्सेज बैरेक, सफाईकर्मी हरिजन, चपरासी, पट्टेदार आदि के रहने के आवास बने हुए थे, जिसमें से कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा गार्डर, पट्टियों के लिए ढहा दिये। ऐसे हैरीटेज स्थल की सुरक्षा के लिए कोई गार्ड नियुक्त नहीं है, अलबत्ता कागजों तक सीमित हो, तो वह अलग बात है।
टेनिस कोर्ट - बार रूम:- मुख्य ऑफिस के नीचे पूर्व की ओर ढ़लान पर शानदार बरामदे मुक्त टेनिस कोर्ट का विशाल बंगला बना हुआ है, जो शाम होते ही गुलजार हो जाता था। ब्रिटिश अधिकारी, डॉक्टर, ऊँचे ओहदेदार ऑफिसर शाम के समय अपनी थकान मिटाने के लिए टेनिस कोर्ट चले जाते थे, जहां टेनिस और मन बहलाव के अन्य साधनों के साथ बार रूम भी था। रात ढ़लते ही यह गुलजार होने लगता था, पेट्रोमैक्स के हल्के उजाले में यहां बीयर और शराब की चुस्कियों के साथ एक-दूसरे का गम बांटते हुए, दिनभर की थकान उतारते थे। विगत का वैभवशाली यह हैरीटेज भवन आज तन्हा उदास पड़ा है। जिसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।
राम मंदिर:- टेनिस कोर्ट के सामने ही आजादी के बाद यहां के मैनेजर श्रीमान् मेहता का बनाया छोटा सा राम मंदिर है। मि. मेहता लम्बे समय तक यहां सॉल्ट डिपार्टमेन्ट के मुखिया रहे और उनका देहान्त भी यहीं हुआ। आज भी इनका उलूम स्थल पर चबुतरा बना हुआ है, जो वाटर स्पोट नम्बर 9 के पीछे हैं, इनका दाह संस्कार यहीं हुआ। इनके निकट ही यां कार्यरत भाटी राजपूत के दाह संस्कार स्थल पर चबूतरा बना हुआ है।
अन्य भवन:- टेनिस कोर्ट से आगे रेतीले टीबे की ऊँचाई पर कई भवन बने हुए हैं, जो आला अफसरों और चिकित्सा विभाग अधिकारियों के हैं। बदकिस्मती से इन शानदार भवनों पर कई स्थानीय लोगों ने कब्जा कर रखा है और सपरिवार रह रहे हैं। कई बंगलों में चारा पड़ा है, तो कई बंगलों को गायों के बाड़े के रूप में काम में लिया जा रहा है। राजस्थान सरकार तहसीलदार का कहना है कि यहां कि सुरक्षा के लिए एक चौकीदार है। अगर चौकीदार है तो इन बंगलों की यह दुर्दशा क्यों है।
अस्पताल:- यहाँ ब्रिटिशकाल में टीबे की ऊँचाई पर शानदार विशाल अंग्रेजी काल का चिकित्सालय बना हुआ था। उस समय आसपास के इस पूरे क्षेत्र में इतना बड़ा चिकित्सालय नहीं था।
इस चिकित्सालय का निर्माण इस तरह किया गया था कि गर्मियों में भी कुदरती ठंडी हवा आती थी। इस शानदार चिकित्सालय के विनाश का कारण इसमें लगी लकड़ी की ठंडी छत, उस पर चूने की परत थी। लकड़ियों-दरवाजों की खातिर इस शानदार चिकित्सालय का विनाश मानव हाथों द्वारा विगत 20 वर्षों में ही हुआ है। यहां की कई भव्य हैरीटेज इमारतें सरकारी देखरेख के अभाव में क्षतिग्रस्त हुई है। राजस्थान प्रशासन ने इस शानदार हैरीटेज की अनदेखी करके यहां मुख्यालय और सॉल्ट पर बने अति वैभवशाली डाक बंगले और क्षेत्र के प्रति उपेक्षा बरतते हुए इसको विनाश के कगार पर पहुंचाया।
रिकॉर्ड रूम:- मुख्यालय के सामने ही विशाल बरामदे युक्त एक बहुत बड़ा कमरा बना हुआ है, जिसमें चारों ओर पत्थर की पट्टियों की चार-चार रैंक बनी हुई है, उसमें हजारों-लाखों की तादाद में ब्रिटिश काल से लेकर स्वतंत्रता के बाद तक, नमक उद्योग लदान बंद होने तक की फाइलों से पूरा कमरा और फर्श फाइलों से अटा पड़ा है। यह रिकॉर्ड उस काल की कई प्रकार की जानकारियों का पुख्ता प्रमाण है और प्रतिदिन की आय-व्यय, खर्चे, कर्मचारियों का वेतन, अन्य खर्चे और सॉल्ट से होने वाली 150 वर्षों के तथाकथित दस्तावेज हैं। इसका शोध संरक्षण अनिवार्य है।
एक और कब्रिस्तान:- कहा जाता है कि हाजी की ढ़ाणी के निकट ईसाई कब्रिस्तान के सिवाय एक और कब्रिस्तान है, लेकिन काफी खोजबीन के पश्चात् भी वह नहीं मिल पाया। संभवतः संरक्षण के अभाव में वह कब्रिस्तान रेत में ही कहीं दफन हो गया हो। हाजी की ढ़ाणी के पास के कब्रिस्तान के समीप स्थित ईसाई कब्रिस्तान में 1877 की एक कब्र 01 वर्ष 01 माह और 26 दिन के एक बच्चे की है। हाजी परिवार को धन्यवाद है कि मुसलमान होते हुए भी वे इस कब्रिस्तान की हिफाजत कर रहे हैं, अन्यथा यह हैरीटेज स्थल भी कभी का मिट गया होता।
जल स्त्रोत:- पेयजल के लिए यह ब्रिटिशकाल में तीन तालाब खोदे गये थे, जिसमें 9 नम्बर तालाब मुख्य था। मुख्यालय के पिछवाड़े बने टेंक में ऊँटों द्वारा तालाबों से पानी लाया जाता था और अस्पताल की ओर भी 3-4 छोटे-बड़े हौद बने हुए थे।
पानी को हल्का गर्म करके उसमें रोग प्रतिरोधाक दवा मिलाकर शुरूआत में एक हैंडपम्प द्वारा पानी एक टंकी में डाला जाता था, वहां से लगे नलों से वाटरमेन सभी ऑफिस एवं आवासों में मटकियों, मस्कों या डोलों द्वारा पानी पहुंचाते थे। बाद में यहां कोयले से चलने वाला वाटर पम्पिंग इंजन भी लगाया गया था। दूर-दराज के कुओं से भी मीठा पानी आता था। ब्रिटिशकाल में यहां नमक उत्पादन संबंधित हर कार्य पूर्णरूपेण सुचारू था। उस काल में यहां 600 से अधिक नमक खदानों में चालीस से साठ हजार तक बाहरी मजदूर भी काम करते थे। सभी प्रकार का प्रशासनिक कार्य डिप्टी ऑफिस कार्यालय में होता था। सारे आदेश, पत्रावलियां वहीं से जारी होती थी।
सांभरा आषापुरा मंदिर:- नमक का उत्पादन करने वाले पचपदरा के खारवाल समाज की सदियों से इष्ट कुलदेवी सांभरा माता है। यह अति प्राचीन मंदिर है। राष्ट्रीय राजमार्ग 112 से पचपदरा सॉल्ट से डेढ़-दो किमी. पहले एक ग्रेवल सड़क सांभरा माता मंदिर जाती है। यहां स्थापित सांभरा आशापुरा माता मंदिर की प्रमुख मूर्ति के नीचे मारवाड़ जोधपुर के महाराज जसवंत सिंह प्रथम का वि.सं. 1705 वैशाख सुदी दशमी सन् 1649 का जीर्णोद्धार अभिलेख है। कुछ मूर्तियां वि.सं. 1300 की या उससे पूर्व कालिक है।
महाराजा हनवंतसिंहजी मारवाड़ जोधपुर द्वारा करवाये गये एक भव्य यज्ञ के आयोजन का भी अभिलेख है।
इससे प्रमाणित होता है कि यह सदियों पूर्व का एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मंदिर है। यहां सदियों से प्रज्जवलित अखण्ड दीप से धुआं न जमकर दीप के ऊपर लगे पत्थर पर हल्की केशर की बाट जमती है, जो सामने रखे दर्पण मंे स्पष्ट नजर आती है। यह मंदिर पचपदरा सॉल्ट स्टेशन और सॉल्ट ऑफिस से 02 किमी. से अधिक दूरी पर है।
वैसे यह मंदिर और पचपदरा सॉल्ट, सैकड़ों नमक खदानें एवं सॉल्ट ऑफिस की हैरीटेज कार्यालय सभी रिफाईनरी क्षेत्र में आते हैं। यहां के बहुसंख्यक लोग रिफाइनरी लगाने के खिलाफ है। खारवाल समाज की 32-34 वर्गमील क्षेत्र में नमक खदाने हैं। अधिकांशतः नमक उत्पादन वाली खदानें अगर रिफाइनरी क्षेत्र में चली जाती है तो हजारों खारवाल समाज परिवार और हजारों मजदूरों को भुखमरी का शिकार होना पड़ेगा।
इस संदर्भ में खारवाल समाज नमक उत्पादन संघ अध्यक्ष द्वारा पूर्व में भी सुप्रीम कोर्ट में रिट दाखिल की जा चुकी है। रिफाईनरी लगने के बाद शेष बचे इलाके में रेतिला इलाका होने से वहां नमक उत्पादन की क्षमता न के बराबर है।
सॉल्ट से राजस्व:- रिकॉर्ड रूम के अवलोकन में से एक फाइल के अनुसार एक माह की प्रतिदिन के राजस्व का इन्द्राज है, जो 3 करोड़ 87 लाख और कुछ अन्य राशि है। इस तरह ब्रिटिश काल में इन सॉल्ट खदानों से ब्रिटिश गवर्मेन्ट को करोड़ों रूपयों का राजस्व प्राप्त होता था, जो उस समय की किसी बड़े स्टेट की जागीर से भी अधिक था। रिकॉर्ड रूम की विशेष छानबीन करने से पुराने रजिस्टरों से नमक से प्राप्त आय के बारे में कई खुलासे हो सकते हैं। उसमें खर्च संबंधित ब्यौरे को भी देखना अनिवार्य है, क्योंकि यहां अलग-अलग विभागों में कई अधिकारियों से लेकर तृतीय-चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी काम करते थे। सुरक्षा के लिए पुलिस व्यवस्था और बड़ा चिकित्सालय भी था।
नॉर्थर्न इण्डिया सॉल्ट रेवेन्यु डिपार्टमेन्ट के अन्तर्गत पचपदरा सॉल्ट:- नॉर्थर्न वेस्ट पचपदरा सॉल्ट राजपुताना के नाम से जाना जाता था। 1945 रिकॉर्ड रूम फाईल के अनुसार पूरे राजपुताना (राजस्थान) का सॉल्ट मुख्यालय जयपुर था, जहां सॉल्ट कमिश्नर ऑफिस थी।
मारवाड़ रियासत जोधपुर में पचपदरा सॉल्ट का ब्रिटिश सरकार के साथ करार-इकरारनामा महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय के समय जब सर प्रताप मारवाड़ रियासत के रिजेंट-मुसायक आला (प्राइम मिनिस्टर) थे, उस काल में 1872 के लगभग यह नमक समझोता हुआ। पचपदरा सॉल्ट में 1876 एवं उसके बाद की गई ब्रिटिश कब्रें मिली है, जिन पर स्पष्ट रूप से ई.सन्. एवं पूर्ण विवरण लिखा है। जिसमें 1888 की एक कब्र्र एक किशार की है। हाजी की ढ़ाणी के निकट स्थित यह ब्रिटिश कब्रिस्तान में रेत में दबी और भी कब्रें हो सकती है, यह एक विशेष महत्वपूर्ण पुरा-विरासत स्थल हैं, जिसका शोध संरक्षण अनिवार्य हैं। कुछ कब्रों पर लगे मेमोरी पत्थर और क्रॉसनुमा पत्थर लोग उखाड़ ले गये, इसलिए पता नहीं चलता कि यह कब्रें किस समय की एवं किसकी है।
पचपदरा सॉल्ट ऑफिस कॉलोनी से 03 किमी. उत्तर की ओर मुस्लिम कब्रिस्तान है, कहा जाता है कि यहां पूर्व में कई ईसाई कब्रें थी, जो नष्ट कर दी गयी, जबकि ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला।
नमक इंस्पैक्टर सैयद की सन् 1919 की यहां शानदार कब्र है, बहुत उम्दा संगमरमर पत्थर पर उसकी तारिख लिखी गई है। यहां से कुछ दूरी पर ब्रिटिश तालाबों के पीछे सन् 1950 से यहां रहे मैनेजर मेहता के शवदाह स्थल पर चबूतरा बनाकर पत्थर लगाया गया है, कुछ लोग आज भी मि. मेहता के प्रति अकीदत और श्रद्धा रखते हैं, कई लोगों का भला भी हुआ है।
इनका कहना है-
पचपदरा में किसी जमाने में आबाद ईमारते अब संरक्षण के अभाव में नष्ट होती जा रही है। सरकार इन पूरा धरोहरो को बचाने के लिये कोई प्रयास नही का रही है। अ्रग्रेज अफसरो की कब्रे भी सौ से अधिक वर्षाे पुरानी है जो अब बर्बाद हो रही है। इन धरोहरो को बचाने की जरूरत है।
राजेन्द्र सिंह मान, सह संयोजक, इंडियन नेशलन ट्रस्ट फॉर आर्ट कल्चर एंड हेरीटेज, बाडमेर।
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