देहरादून। 71 की की जंग में हीरो रहे महावीर चक्र विजेता जनरल हनुत सिंह का हरिद्वार में सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। 1971 भारत-पाक युद्ध में ऐतिहासिक बसंतर की लड़ाई के हीरो लेफ्टिनेंट जनरल हनूत सिंह का शनिवार देर रात निधन हो गया था।
वे 82 वर्ष के थे। बताया जाता है कि जनरल सिंह ने समाधि ली थी। राजस्थान के बाड़मेर जिले के जसोल में पैदा हुए हनूत सिंह ने देहरादून के स्कूल में शिक्षा लेने के बाद ज्वाइंट सर्विसेज विंग (मौजूदा एनडीए) में प्रवेश पाया और फिर 1953 में पुणा हार्स आर्मर्ड (टैंक) रेजिमेंट ज्वाइन किया। 1971 युद्ध में जनरल हनूत ने बतौर लेफ्टिनेंट कर्नल 17 पुणा हार्स कोशकरगढ़ सेक्टर में कमान किया।
13 दिन चले इस युद्ध में 16 दिसंबर को कर्नल हनूत के टैंकों के पीछे पैदल सेना ने बसंतर नदी को पार किया। सेना के इतिहास में बसंतर टैंकों की आमने-सामने की लड़ाई का सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है। सेना में रहते हुए जनरल हनूत अध्यात्म ध्यान से जुड़े, लेकिन कभी सिपाही के धर्म पर आस्थाओं को हावी नहीं होने दिया। आज भी वे महान सैन्य रणनीतिकार के तौर पर याद किए जाते हैं।रिटायरमेंट के बाद उन्होंने देहरादून में अपने गुरु शिवाबालायोगी महाराज के आश्रम में संत का जीवन जिया। पूर्व वित्त मंत्री जसवंत सिंह उनके चचेरे भाई हैं। हनूत सिंह का अंतिम संस्कार पूरे सैन्य सम्मान के साथ किया गया।
कनखल स्थित श्मशान घाट पर लेफ्टिनेंट जनरल हनूत सिंह की चिता को मुखाग्नि देते भांजे कुंवर नृपेंद्र सिंह ने दी।
हनूत सिंह की अंत्येष्टि में उनके परिजन मौजूद रहे। अंत्येष्टि में शामिल होने पहुंचे पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह के बेटे विधायक मानवेंद्र सिंह।
वे 82 वर्ष के थे। बताया जाता है कि जनरल सिंह ने समाधि ली थी। राजस्थान के बाड़मेर जिले के जसोल में पैदा हुए हनूत सिंह ने देहरादून के स्कूल में शिक्षा लेने के बाद ज्वाइंट सर्विसेज विंग (मौजूदा एनडीए) में प्रवेश पाया और फिर 1953 में पुणा हार्स आर्मर्ड (टैंक) रेजिमेंट ज्वाइन किया। 1971 युद्ध में जनरल हनूत ने बतौर लेफ्टिनेंट कर्नल 17 पुणा हार्स कोशकरगढ़ सेक्टर में कमान किया।
13 दिन चले इस युद्ध में 16 दिसंबर को कर्नल हनूत के टैंकों के पीछे पैदल सेना ने बसंतर नदी को पार किया। सेना के इतिहास में बसंतर टैंकों की आमने-सामने की लड़ाई का सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है। सेना में रहते हुए जनरल हनूत अध्यात्म ध्यान से जुड़े, लेकिन कभी सिपाही के धर्म पर आस्थाओं को हावी नहीं होने दिया। आज भी वे महान सैन्य रणनीतिकार के तौर पर याद किए जाते हैं।रिटायरमेंट के बाद उन्होंने देहरादून में अपने गुरु शिवाबालायोगी महाराज के आश्रम में संत का जीवन जिया। पूर्व वित्त मंत्री जसवंत सिंह उनके चचेरे भाई हैं। हनूत सिंह का अंतिम संस्कार पूरे सैन्य सम्मान के साथ किया गया।
कनखल स्थित श्मशान घाट पर लेफ्टिनेंट जनरल हनूत सिंह की चिता को मुखाग्नि देते भांजे कुंवर नृपेंद्र सिंह ने दी।
हनूत सिंह की अंत्येष्टि में उनके परिजन मौजूद रहे। अंत्येष्टि में शामिल होने पहुंचे पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह के बेटे विधायक मानवेंद्र सिंह।
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देश के असली हीरो की आखिरी विदाई के दौरान सलामी देते सेना के जवान। |
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