दृढ़ आस्था और आत्मविश्वास सिखाता है माता का ये रूप, किसी भी काम की शुरुआत में दो चीजों की आवश्यकता होती है पहली आस्था और दूसरा आत्मविश्वास। नवरात्रि में माता दुर्गा के नौ रूपों में सबसे पहले शैल पुत्री की पूजा होती है।
शैल पुत्री का अर्थ है हिमालय की बेटी। आस्था और आत्मविश्वास अगर हिमालय की तरह अचल और स्थिर हो तो सफलता जरूर मिलती है। पुराणों में देवी की महिमा और नवरात्रि के महत्व पर कई प्रसंग हैं। लेकिन नवरात्रि शक्ति सामथ्र्य और सफलता का उत्सव है। भगवान राम ने नवरात्रि के नौ दिनों में शक्ति प्राप्त की। दसवें दिन रावण का वध कर संसार को संकट से बाहर निकाला। ये नौ दिन शक्ति की साधना के हैं और सारी शक्ति हमारी आस्था और आत्मविश्वास पर टिकी है। हम नवरात्रि के पहले दिन माता के प्रति आस्था और विश्वास जताकर अपने आत्मविश्वास को पुष्ट करते हैं। इसके बाद अगले आठ दिन अलग-अलग शक्तियों की साधना करके माता को प्रसन्न करते हैं। नौ दिनों के व्रत पालन से जीवन में विजयदशमी का उत्सव आता है। मारकंडेय पुराण के अनुसार देवी का यह नाम हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा। हिमालय हमारी शक्ति दृढ़ता आधार व स्थिरता का प्रतीक है। शैल पुत्री हमारे जीवन को स्थिरता प्रदान करती हैं। मां शैल पुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिन योगी जन अपनी शक्ति मूलाधार में स्थित करते हैं व योग साधना करते हैं। देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैल पुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैल पुत्री का पूजन करना चाहिए। धर्म
ध्यान मंत्र
वंदे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम।
वृषारूढ़ा शूल धरां यशस्विनी।।
शैल पुत्री का अर्थ है हिमालय की बेटी। आस्था और आत्मविश्वास अगर हिमालय की तरह अचल और स्थिर हो तो सफलता जरूर मिलती है। पुराणों में देवी की महिमा और नवरात्रि के महत्व पर कई प्रसंग हैं। लेकिन नवरात्रि शक्ति सामथ्र्य और सफलता का उत्सव है। भगवान राम ने नवरात्रि के नौ दिनों में शक्ति प्राप्त की। दसवें दिन रावण का वध कर संसार को संकट से बाहर निकाला। ये नौ दिन शक्ति की साधना के हैं और सारी शक्ति हमारी आस्था और आत्मविश्वास पर टिकी है। हम नवरात्रि के पहले दिन माता के प्रति आस्था और विश्वास जताकर अपने आत्मविश्वास को पुष्ट करते हैं। इसके बाद अगले आठ दिन अलग-अलग शक्तियों की साधना करके माता को प्रसन्न करते हैं। नौ दिनों के व्रत पालन से जीवन में विजयदशमी का उत्सव आता है। मारकंडेय पुराण के अनुसार देवी का यह नाम हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा। हिमालय हमारी शक्ति दृढ़ता आधार व स्थिरता का प्रतीक है। शैल पुत्री हमारे जीवन को स्थिरता प्रदान करती हैं। मां शैल पुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिन योगी जन अपनी शक्ति मूलाधार में स्थित करते हैं व योग साधना करते हैं। देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैल पुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैल पुत्री का पूजन करना चाहिए। धर्म
ध्यान मंत्र
वंदे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम।
वृषारूढ़ा शूल धरां यशस्विनी।।
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