आयुक्त मनमर्जी पर कायम,नही सुन रहे है परिवादी की फरियाद,
बालोतरा। न्यायालय सिविल न्यायाधीश वरिष्ठ खण्ड बालोतरा में दायर दीवानी प्रकरण संख्या 2/2002 के क्रम में 13 फरवरी 2003 में पीठासीन अधिकारी आर.जे.एस. अरूण कुमार खण्डेलवाल के निर्णय के उपरान्त भीं नगरपालिका(वर्तमान में नगरपरिषद) बालोतरा अतिक्रमण हटाने में कोई पहल नही कर रही है और वादी मांगु खां पुत्र ईमाम खां मोयला स्थायी व आदेशात्मक निषेधाज्ञा के बावजूद पट्टे से महरूम है। न्यायालय सिविल न्यायाधीश वरिष्ठ खण्ड बालोतरा द्वारा स्थायी व आदेशात्मक निषेधाज्ञा के निर्णय के 12 वर्ष गुजर जाने के बाद भी वादी मांगु खां पुत्र इमाम खां अपने हक को लेकर नगरपरिषद से न्याय की गुहार कर रहा है। न्यायालय ने लगभग 12 वर्ष पूर्व स्थाई व आदेशात्मक निषेधाज्ञा का निर्णय देते हुए नगरपालिका को निर्देश दिए थे कि बालोतरा के वार्ड सं. 21 में नीलम सिनेमा के पीछे 1970 से पूर्व वादी मांगु खां के पिता ईमाम खां का कब्जा चला आ रहा है तथा रहवासी कमरा बना हुआ है। जिसका नगरपरिषद के रेकर्ड में इन्द्राज है तथा जल, विद्युत कनेक्शन भी है साथ ही नियमन हेतु प्रार्थना पत्र 1978 में दर्ज है। वादी मांगु खां ने वाद में यह भी बताया कि 1996 में नगर पार्षद फरसराम और उसके भाई मोहनलाल कलाल ने नगरपालिका की बिना अनुमति के आम रास्ते की जमीन पर पट्टियां गाड कर अतिक्रमण कर लिया तथा चुनाव के दौरान लोहे के चद्दर डाल दिए है। मगर शिकायत के बाद भी अतिक्रमण नही हटाए गए। इस पर पडोसी जोगाराम ने भी वादी मांगु खां की जमीन के पश्चिमी रास्ते की जमीन पर अतिक्रमण कर लिया जिसे उपखण्ड अधिकारी के हटाने के आदेश के उपरांत भी नगरपालिका ने नही हटाया। आदेशात्मक निषेधाज्ञा के बाद भी रास्ते की जमीन से अतिक्रमण नही हटाया गया। सिविल न्यायाधीश वरिष्ठ खण्ड बालोतरा द्वारा बार-बार अवसर देने के उपरांत भी नगरपालिका ने जवाबदावा पेश नही किया फलस्वरूप 8 जुलाई 1999 को जवाबदावा बंद कर दिया गया जिससे व्यथित होकर प्रतिवादी सं. 1 ने माननीय उच्च न्यायालय में निगरानी याचिका पेश की। माननीय उच्च न्यायालय ने निगरानी याचिका स्वीकार करते हुए आदेश दिया कि नगरपालिका बालोतरा पांच हजार रूपये बतौर हर्जा वादी मांगु खां को अदा करे तो जवाब दावा अभिलेख पर ले लिया जाए लेकिन नगरपालिका के द्वारा हर्जे की राशि जमा नही किए जाने के फलस्वरूप जवाब दावा अभिलेख पर नही लिया गया व अपठनीय मान गया। इस प्रकरण में प्रतिवादी मोहनलाल के वाद पत्र को भी खारिज किया गया एवं पांच हजार का जुर्माना हर्जाने के रूप में वादी को देने का निर्णय लिया गया। अनेक न्यायिक दृष्टांतों में तार विस्तार में यह अभिनिर्धारित किया गया कि न्यायालय का आश्रय लिए बिना वास्तविक कब्जाधारी को नही हटाया जा सकता। सिविल न्यायाधीश वरिष्ठ खण्ड बालोतरा ने उक्त प्रकरण में वादी मांगु खां के पक्ष में जारी आदेश पारित किया कि प्रतिवादी सं. 1 नगरपालिका मण्डल बालोतरा को जरिए सिायी निषेधाज्ञा से हमशा के लिए पाबंद किया जाता है कि वाद पत्र में वर्णित भू-खण्ड पर वादी मांगु खां के कब्जे में बिना विधिक प्रक्रिया अपनाएं कोई दखल उसके अधिकारीगण व कर्मचारीगण स्वयं न करे न ही करावें। नगरपालिका को जरिए आदेशात्मक निषेधाज्ञा से पाबंद किया जाता है कि आम रास्ते पर प्रतिवादी सं. 2 मोहनलाल खटीक ने अतिक्रमण कर लिया है उसे तत्काल हटाया जाएं एवं भविष्य में आम रास्ते की भूमि पर कोई अतिक्रमण नही होने दिया जाए। उक्त फैसले के बाद अतिक्रमणकारी मोहनलाल खटीक ने फैसला अपने खिलाफ गया जान कर उक्त विवादास्पद अतिक्रमण को औने-पौने दाम में लुकमान पुत्र अजीम को बेच दिया जिस पर लुकमान ने ईमारत बना दी। मगर नगरपालिका ने इसे रोकने का प्रयास नही किया। वादी मांगु खां पिछले 12 वर्षो से न्यायालय के आदेश की पालना हेतु नगरपालिका से गुहार कर रहा है तथा पट्टे की मांग कर रहा है मगर नगरपालिका न्यायिक आदेश की अवहेलना कर रही है। जिस पर वादी मंागु खां नगरपालिका की हठधर्मिता से परेशान हैं। परिवादी आज भी नगर परिषद के चक्कर काट रहा है परंतु आयुक्त उनकी एक नही सुन रहे है और न्यायालय के आदेशों की भी अवहेलना कर रहे है।
बालोतरा। न्यायालय सिविल न्यायाधीश वरिष्ठ खण्ड बालोतरा में दायर दीवानी प्रकरण संख्या 2/2002 के क्रम में 13 फरवरी 2003 में पीठासीन अधिकारी आर.जे.एस. अरूण कुमार खण्डेलवाल के निर्णय के उपरान्त भीं नगरपालिका(वर्तमान में नगरपरिषद) बालोतरा अतिक्रमण हटाने में कोई पहल नही कर रही है और वादी मांगु खां पुत्र ईमाम खां मोयला स्थायी व आदेशात्मक निषेधाज्ञा के बावजूद पट्टे से महरूम है। न्यायालय सिविल न्यायाधीश वरिष्ठ खण्ड बालोतरा द्वारा स्थायी व आदेशात्मक निषेधाज्ञा के निर्णय के 12 वर्ष गुजर जाने के बाद भी वादी मांगु खां पुत्र इमाम खां अपने हक को लेकर नगरपरिषद से न्याय की गुहार कर रहा है। न्यायालय ने लगभग 12 वर्ष पूर्व स्थाई व आदेशात्मक निषेधाज्ञा का निर्णय देते हुए नगरपालिका को निर्देश दिए थे कि बालोतरा के वार्ड सं. 21 में नीलम सिनेमा के पीछे 1970 से पूर्व वादी मांगु खां के पिता ईमाम खां का कब्जा चला आ रहा है तथा रहवासी कमरा बना हुआ है। जिसका नगरपरिषद के रेकर्ड में इन्द्राज है तथा जल, विद्युत कनेक्शन भी है साथ ही नियमन हेतु प्रार्थना पत्र 1978 में दर्ज है। वादी मांगु खां ने वाद में यह भी बताया कि 1996 में नगर पार्षद फरसराम और उसके भाई मोहनलाल कलाल ने नगरपालिका की बिना अनुमति के आम रास्ते की जमीन पर पट्टियां गाड कर अतिक्रमण कर लिया तथा चुनाव के दौरान लोहे के चद्दर डाल दिए है। मगर शिकायत के बाद भी अतिक्रमण नही हटाए गए। इस पर पडोसी जोगाराम ने भी वादी मांगु खां की जमीन के पश्चिमी रास्ते की जमीन पर अतिक्रमण कर लिया जिसे उपखण्ड अधिकारी के हटाने के आदेश के उपरांत भी नगरपालिका ने नही हटाया। आदेशात्मक निषेधाज्ञा के बाद भी रास्ते की जमीन से अतिक्रमण नही हटाया गया। सिविल न्यायाधीश वरिष्ठ खण्ड बालोतरा द्वारा बार-बार अवसर देने के उपरांत भी नगरपालिका ने जवाबदावा पेश नही किया फलस्वरूप 8 जुलाई 1999 को जवाबदावा बंद कर दिया गया जिससे व्यथित होकर प्रतिवादी सं. 1 ने माननीय उच्च न्यायालय में निगरानी याचिका पेश की। माननीय उच्च न्यायालय ने निगरानी याचिका स्वीकार करते हुए आदेश दिया कि नगरपालिका बालोतरा पांच हजार रूपये बतौर हर्जा वादी मांगु खां को अदा करे तो जवाब दावा अभिलेख पर ले लिया जाए लेकिन नगरपालिका के द्वारा हर्जे की राशि जमा नही किए जाने के फलस्वरूप जवाब दावा अभिलेख पर नही लिया गया व अपठनीय मान गया। इस प्रकरण में प्रतिवादी मोहनलाल के वाद पत्र को भी खारिज किया गया एवं पांच हजार का जुर्माना हर्जाने के रूप में वादी को देने का निर्णय लिया गया। अनेक न्यायिक दृष्टांतों में तार विस्तार में यह अभिनिर्धारित किया गया कि न्यायालय का आश्रय लिए बिना वास्तविक कब्जाधारी को नही हटाया जा सकता। सिविल न्यायाधीश वरिष्ठ खण्ड बालोतरा ने उक्त प्रकरण में वादी मांगु खां के पक्ष में जारी आदेश पारित किया कि प्रतिवादी सं. 1 नगरपालिका मण्डल बालोतरा को जरिए सिायी निषेधाज्ञा से हमशा के लिए पाबंद किया जाता है कि वाद पत्र में वर्णित भू-खण्ड पर वादी मांगु खां के कब्जे में बिना विधिक प्रक्रिया अपनाएं कोई दखल उसके अधिकारीगण व कर्मचारीगण स्वयं न करे न ही करावें। नगरपालिका को जरिए आदेशात्मक निषेधाज्ञा से पाबंद किया जाता है कि आम रास्ते पर प्रतिवादी सं. 2 मोहनलाल खटीक ने अतिक्रमण कर लिया है उसे तत्काल हटाया जाएं एवं भविष्य में आम रास्ते की भूमि पर कोई अतिक्रमण नही होने दिया जाए। उक्त फैसले के बाद अतिक्रमणकारी मोहनलाल खटीक ने फैसला अपने खिलाफ गया जान कर उक्त विवादास्पद अतिक्रमण को औने-पौने दाम में लुकमान पुत्र अजीम को बेच दिया जिस पर लुकमान ने ईमारत बना दी। मगर नगरपालिका ने इसे रोकने का प्रयास नही किया। वादी मांगु खां पिछले 12 वर्षो से न्यायालय के आदेश की पालना हेतु नगरपालिका से गुहार कर रहा है तथा पट्टे की मांग कर रहा है मगर नगरपालिका न्यायिक आदेश की अवहेलना कर रही है। जिस पर वादी मंागु खां नगरपालिका की हठधर्मिता से परेशान हैं। परिवादी आज भी नगर परिषद के चक्कर काट रहा है परंतु आयुक्त उनकी एक नही सुन रहे है और न्यायालय के आदेशों की भी अवहेलना कर रहे है।
No comments:
Post a Comment