स्वस्थ देह और मन से ही होगी लक्ष्य की प्राप्ति, सिखाती हैं मां कुष्मांडा
नवरात्रि के चौथे दिन की प्रमुख देवी मां कुष्मांडा हैं। देवी कुष्मांडा रोगों को तुरंत नष्ट करने वाली हैं। इनकी भक्ति करने वाले श्रद्धालु को धन-धान्य और संपदा के साथ अच्छा स्वास्थ्य भी प्राप्त होता है। मां के इस चौथे रूप का संकेत है कि हमें हमेशा अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना चाहिए। रोगी तन और मन से कभी कोई लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता। हमें अपने शरीर से पुष्ट और मन से प्रसन्न रहना चाहिए। माता के कुष्मांडा स्वरूप की आराधना से भयंकर रोगों के भय से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति का जीवन निरोगी रहता है। माता की घोषणा है कि आप लक्ष्य पूर्ति में इतने भी न खो जाएं कि अपने शरीर को कमजोर और मन को उत्साहहीन कर लें। औषधियों का सेवन, सुपाच्य भोजन और आवश्यक आराम भी शरीर और मन के लिए जरूरी है। इससे हमारे मन में निरंतर अच्छे विचारों के आने का क्रम जारी रहता है और उनको मूर्त रूप देने के लिए शरीर सक्षम होता है।
देवी कुष्मांडा मां दुर्गा का चौथा स्वरूप हैं। ऐसी मान्यता है कि इस ब्रह्मांड को मां कुष्मांडा ने मंद मुस्कान के साथ उत्पन्न किया है। इसी वजह से इन्हें कुष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है। आठ भुजाओं वाली कुष्मांडा देवी अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं। इनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमलपुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा रहते हैं। देवी कुष्मांडा का वाहन सिंह है।
महत्व
मां दुर्गा के इस चतुर्थ रूप कुष्मांडा ने अपने उदर से ब्रह्मांड को उत्पन्न किया। इसी वजह से दुर्गा के इस स्वरूप का नाम कुष्मांडा पड़ा। नवरात्रि के चौथे दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। मां कुष्मांडा के पूजन से हमारे शरीर का अनाहत चक्र जागृत होता है। इनकी उपासना से हमारे समस्त रोग व शोक दूर हो जाते हैं। साथ ही, भक्तों को आयु, यश, बल और आरोग्य के साथ-साथ सभी भौतिक और आध्यात्मिक सुख भी प्राप्त होते हैं।
ध्यान मंत्र
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधानाहस्तपद्याभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु में
नवरात्रि के चौथे दिन की प्रमुख देवी मां कुष्मांडा हैं। देवी कुष्मांडा रोगों को तुरंत नष्ट करने वाली हैं। इनकी भक्ति करने वाले श्रद्धालु को धन-धान्य और संपदा के साथ अच्छा स्वास्थ्य भी प्राप्त होता है। मां के इस चौथे रूप का संकेत है कि हमें हमेशा अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना चाहिए। रोगी तन और मन से कभी कोई लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता। हमें अपने शरीर से पुष्ट और मन से प्रसन्न रहना चाहिए। माता के कुष्मांडा स्वरूप की आराधना से भयंकर रोगों के भय से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति का जीवन निरोगी रहता है। माता की घोषणा है कि आप लक्ष्य पूर्ति में इतने भी न खो जाएं कि अपने शरीर को कमजोर और मन को उत्साहहीन कर लें। औषधियों का सेवन, सुपाच्य भोजन और आवश्यक आराम भी शरीर और मन के लिए जरूरी है। इससे हमारे मन में निरंतर अच्छे विचारों के आने का क्रम जारी रहता है और उनको मूर्त रूप देने के लिए शरीर सक्षम होता है।
देवी कुष्मांडा मां दुर्गा का चौथा स्वरूप हैं। ऐसी मान्यता है कि इस ब्रह्मांड को मां कुष्मांडा ने मंद मुस्कान के साथ उत्पन्न किया है। इसी वजह से इन्हें कुष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है। आठ भुजाओं वाली कुष्मांडा देवी अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं। इनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमलपुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा रहते हैं। देवी कुष्मांडा का वाहन सिंह है।
महत्व
मां दुर्गा के इस चतुर्थ रूप कुष्मांडा ने अपने उदर से ब्रह्मांड को उत्पन्न किया। इसी वजह से दुर्गा के इस स्वरूप का नाम कुष्मांडा पड़ा। नवरात्रि के चौथे दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। मां कुष्मांडा के पूजन से हमारे शरीर का अनाहत चक्र जागृत होता है। इनकी उपासना से हमारे समस्त रोग व शोक दूर हो जाते हैं। साथ ही, भक्तों को आयु, यश, बल और आरोग्य के साथ-साथ सभी भौतिक और आध्यात्मिक सुख भी प्राप्त होते हैं।
ध्यान मंत्र
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधानाहस्तपद्याभ्यां कुष्माण्डा शुभदास्तु में
No comments:
Post a Comment