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Friday, September 26, 2014

तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा

नवरात्रि का तीसरा दिन माता चंद्रघंटा को समर्पित है। चंद्रघंटा के नाम से ही स्पष्ट है कि इनमें घोर स्वर का वास है। माता का ये स्वरूप हमें सिखाता है कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए। समय और साधन के अनुसार हमें सफलता प्राप्ति के प्रयास शुरू कर देने चाहिए। जब हम किसी कार्य की सिद्धि के लिए प्रयास शुरू करें तो हमारे नेत्रों में सिर्फ लक्ष्य ही दिखना चाहिए। माता के इस स्वरूप के दस हाथ हैं। ये संकेत करता है कि हमें एक साथ कई काम करने की आदत होनी चाहिएए क्योंकि जब भी हम किसी काम को करने निकलते हैं तो हमारे सामने कई तरह के संकट खड़े हो जाते हैं। अगर हम किसी एक परेशानी पर ही ध्यान केंद्रित कर देंगे तो हमारा लक्ष्य चूक जाएगा। इस कारण हमें कई काम एक साथ करने की आदत होनी चाहिए। जिससे हमारा लक्ष्य साधन भी न रुके और हम आने वाले हर संकट से बेहतर तरीके से निपट सकें। यह शक्ति माता का शिवदूती स्वरूप हैं। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है। इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है।

सफ लता के पहले नाद का प्रतीक है मां चंद्रघंटा 
मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अद्र्धचंद्र है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं। इनके दस हाथों में शस्त्र आदि हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए तैयार रहने जैसी है। इनके घंटे की भयानक ध्वनि से अत्याचारी दानवए दैत्य आदि सभी डरते हैं। असुरों के साथ युद्ध में देवी चंद्रघंटा ने घंटे की टंकार से असुरों का नाश कर दिया था। नवरात्रि के तृतीय दिन इनका पूजन किया जाता है। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतरू प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
ध्यान मंत्र 
पिण्डजप्रवरारूढ़ा ण्डकोपास्त्रकैर्युता। 
प्रसादं तनुते मह्रयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता

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