माता ब्रह्मचारिणी सिखाती हैं कि सफलता के लिए संयम कितना जरूरी
आस्था और आत्मविश्वास से भरे पहले दिन के बाद दूसरे दिन सफलता के दूसरे सूत्र की बारी आती है। दूसरा दिन है माता के ब्रह्मचारिणी रूप का। ब्रह्मचारिणी स्वरूप प्रतीक है तप और संयम का। लक्ष्य प्राप्ति के लिए निरंतर तप और संयम की आवश्यकता होती है। माता का ये रूप सिखाता है कि हम जब भी कोई कार्य शुरू करें तो सफलता मिलने तक लगातार प्रयास करते रहें। निरंतर प्रयास ही साधना है। यही तप है। साथ ही संयम भी जरूरी है। जब हम किसी मार्ग पर चल पड़ते हैं तो रास्ते में हमें विचलित करने वाली कई चीजें मिलती हैं। जिसके मन में संयम का भाव नहीं है, वो अपने मार्ग से भटक जाता है और दूसरी चीजों के पीछे भागना शुरू कर देता है। मन में संयम हो तो व्यक्ति एकनिष्ठ भाव से अपने लक्ष्य की साधना करता है। हमारे मन में संयम का भाव होना चाहिए। देवी ब्रह्मचारिणी ब्रह्मशक्ति यानी तप की शक्ति की प्रतीक हैं। इनकी आराधना से भक्त की तप करने की शक्ति बढ़ती है। साथ ही सभी मनोवांछित कार्य पूर्ण होते हैं।
ध्यान मंत्र
दधना करपद्याभ्यांक्षमालाकमण्डलू।
देवीप्रसीदतु मयी ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
नव दुर्गा में दूसरी माताजी हैं मां ब्रह्मचारिणी। देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अद्भुत और दिव्य है। मां के दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमंडल रहता है।
कैसे होती है सिद्धि
ब्रह्मचारिणी हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में बिना तपस्या अर्थात कठोर परिश्रम के सफलता प्राप्त करना असंभव है। बिना श्रम के सफलता प्राप्त करना ईश्वर प्रबंधन के विपरीत है। अत: ब्रह्मशक्ति अर्थात समझने व तप करने की शक्ति के लिए इस दिन शक्ति का स्मरण करें। योग शास्त्र में यह शक्ति स्वाधिष्ठान में स्थित होती है। अत: समस्त ध्यान स्वाधिष्ठान में करने से यह शक्ति मिलती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है।
आस्था और आत्मविश्वास से भरे पहले दिन के बाद दूसरे दिन सफलता के दूसरे सूत्र की बारी आती है। दूसरा दिन है माता के ब्रह्मचारिणी रूप का। ब्रह्मचारिणी स्वरूप प्रतीक है तप और संयम का। लक्ष्य प्राप्ति के लिए निरंतर तप और संयम की आवश्यकता होती है। माता का ये रूप सिखाता है कि हम जब भी कोई कार्य शुरू करें तो सफलता मिलने तक लगातार प्रयास करते रहें। निरंतर प्रयास ही साधना है। यही तप है। साथ ही संयम भी जरूरी है। जब हम किसी मार्ग पर चल पड़ते हैं तो रास्ते में हमें विचलित करने वाली कई चीजें मिलती हैं। जिसके मन में संयम का भाव नहीं है, वो अपने मार्ग से भटक जाता है और दूसरी चीजों के पीछे भागना शुरू कर देता है। मन में संयम हो तो व्यक्ति एकनिष्ठ भाव से अपने लक्ष्य की साधना करता है। हमारे मन में संयम का भाव होना चाहिए। देवी ब्रह्मचारिणी ब्रह्मशक्ति यानी तप की शक्ति की प्रतीक हैं। इनकी आराधना से भक्त की तप करने की शक्ति बढ़ती है। साथ ही सभी मनोवांछित कार्य पूर्ण होते हैं।
ध्यान मंत्र
दधना करपद्याभ्यांक्षमालाकमण्डलू।
देवीप्रसीदतु मयी ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
नव दुर्गा में दूसरी माताजी हैं मां ब्रह्मचारिणी। देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अद्भुत और दिव्य है। मां के दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमंडल रहता है।
कैसे होती है सिद्धि
ब्रह्मचारिणी हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में बिना तपस्या अर्थात कठोर परिश्रम के सफलता प्राप्त करना असंभव है। बिना श्रम के सफलता प्राप्त करना ईश्वर प्रबंधन के विपरीत है। अत: ब्रह्मशक्ति अर्थात समझने व तप करने की शक्ति के लिए इस दिन शक्ति का स्मरण करें। योग शास्त्र में यह शक्ति स्वाधिष्ठान में स्थित होती है। अत: समस्त ध्यान स्वाधिष्ठान में करने से यह शक्ति मिलती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है।
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