स्कंध माता से सिखिए नेतृत्व के सटीक सूत्र नवरात्रा स्पेशल
नवरात्र की पंचमी तिथि को स्कंद माता की पूजा की जाती है। स्कंद माता भक्तों को सुख-शांति प्रदान करने वाली माता हैं। देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कंद माता के नाम से जाना जाता है।
माता का ये स्वरूप नेतृत्व के गुण को मजबूत करता है। माता के इस स्वरूप की गोद में भगवान स्कंध कार्तिकेय विराजमान हैं। ये स्वरूप हमारी नेतृत्व क्षमता का प्रतीक है। हम जब नेतृत्व की भूमिका में हों तो हमारे अधीनस्थों के लिए ऐसा भाव मन में होना चाहिए जैसा माता का पुत्र के लिए होता है। नेतृत्व में दो काम प्रमुख होते हैं। टीम से काम लेना और टीम को संभालना। नेतृत्व वही व्यक्ति कर सकता है जिसके पास लक्ष्य पाने की क्षमता हो और वो दूसरों के प्रति आदर व अपनत्व का भाव रखता हो। स्कंध माता प्रेम और वात्सल्य की मूर्ति हैं। उनके आशीर्वाद से हमें नेतृत्व का गुण प्राप्त होता है।
मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप का नाम स्कंदमाता है। इनकी चार भुजाएं हैं। दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा में भगवान स्कंद गोद में हैं। दाहिने तरफ की नीची वाली भुजा में कमल पुष्प है। बाएं तरफ की ऊपर वाली भुजा वर मुद्रा तथा नीचे वाली भुजा में भी कमल पुष्प है।
महत्व
नवरात्र की पंचमी तिथि को स्कंदमाता की पूजा विशेष फलदाई होती है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिए ताकि ध्यान वृत्ति एकाग्र हो सके। यह शक्ति परम शांति व सुख का अनुभव कराती है।
ध्यान मंत्र
सिंहासनगता नित्यं पद्मातिकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी
नवरात्र की पंचमी तिथि को स्कंद माता की पूजा की जाती है। स्कंद माता भक्तों को सुख-शांति प्रदान करने वाली माता हैं। देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कंद माता के नाम से जाना जाता है।
माता का ये स्वरूप नेतृत्व के गुण को मजबूत करता है। माता के इस स्वरूप की गोद में भगवान स्कंध कार्तिकेय विराजमान हैं। ये स्वरूप हमारी नेतृत्व क्षमता का प्रतीक है। हम जब नेतृत्व की भूमिका में हों तो हमारे अधीनस्थों के लिए ऐसा भाव मन में होना चाहिए जैसा माता का पुत्र के लिए होता है। नेतृत्व में दो काम प्रमुख होते हैं। टीम से काम लेना और टीम को संभालना। नेतृत्व वही व्यक्ति कर सकता है जिसके पास लक्ष्य पाने की क्षमता हो और वो दूसरों के प्रति आदर व अपनत्व का भाव रखता हो। स्कंध माता प्रेम और वात्सल्य की मूर्ति हैं। उनके आशीर्वाद से हमें नेतृत्व का गुण प्राप्त होता है।
मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप का नाम स्कंदमाता है। इनकी चार भुजाएं हैं। दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा में भगवान स्कंद गोद में हैं। दाहिने तरफ की नीची वाली भुजा में कमल पुष्प है। बाएं तरफ की ऊपर वाली भुजा वर मुद्रा तथा नीचे वाली भुजा में भी कमल पुष्प है।
महत्व
नवरात्र की पंचमी तिथि को स्कंदमाता की पूजा विशेष फलदाई होती है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिए ताकि ध्यान वृत्ति एकाग्र हो सके। यह शक्ति परम शांति व सुख का अनुभव कराती है।
ध्यान मंत्र
सिंहासनगता नित्यं पद्मातिकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी
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