प्रेम की खातिर खोदी नाखूनों से झील,फिर भी नहीं मिला प्यार तो त्याग दिए प्राण
संवाददाता चेतन सुन्देशा 9414532417
माउंट आबू। कहते है कि प्रेम दिमाग की एक रूमानी उड़ान है। इसी रूमानी उड़ान की गिरफ्त के चलते प्रेम गं्रथों में कई प्रेमी जोड़ों के नाम इतिहास में दर्ज हो गए,किसी ने इसे रास्ते का पत्थर बनाया तो किसी ने उल्फत का मंदिर। प्यार मगरूर भी है और सुरूर भी। कहते है मांउट आबू की हसीन वादियों में प्रेमी जोड़े ‘रसिया बालम’ ने अपने प्यार की खातिर नाखूनों से हीं झील को खोद डाली।
माउंट आबू का सौंदर्य जितना खूबसूरत है उससे कहीं ज्यादा मार्मिक है इन वादियों में दफन ‘रसिया बालम’ और कुंवारी कन्या की प्रेम गाथा की गवाहीं देता हुआ प्रतीत होता है। इस प्रेम गाथा को आज भी मारवाड़ के हर इलाके में घर-घर गाया जाता है।
मंदिर में रसिया बालम व कुंवारी कन्या की प्रतिमा आज भी मौजूद
माउंट आबू के विख्यात देलवाड़ा मंदिर के पीछे एक मंदिर में रसिया बालम और कुंवारी कन्या की मूर्ति आज भी मौजूद है। मंदिर के बाहर पत्थरों के ढ़ेर के नीचे दफन है इस प्रेम कहानी की खलनायिका कुंवारी कन्या की मां मूर्ति जिसे रसिया बालम ने श्राप देकर पत्थर बना दिया था।
यह है इस प्रेम गाथा का इतिहास
रसिया बालम माउंट आबू में मजदूरी करने के लिए आया था और उसने वहां पर कुंवारी कन्या को देखा तो उसे देखते हीं प्यार में पड़ गया। कुछ ऐसा हीं हाल कुंवारी कन्या का भी हुआ। धीरे-धीरे ये प्यार परवान चढऩे लगा। बताया जाता है कि एक दिन रसिया बालम ने कुंवारी कन्या के पिता के सामने उसकी बेटी से विवाह का प्रस्ताव रख दिया। कुंवारी कन्या के पिता ने प्रस्ताव तो स्वीकार कर लिया,लेकिन इसके बदले में एक शर्त रसिया बालम के सामने रख दी। कुंवारी कन्या के पिता ने उस शर्त में कहा कि अगर वो भोर(सूर्योदय) होने से पहले एक झील को अपने नाखूनों से खोद कर उसके पास आएगा तो वह अपनी बेटी की शादी रसिया बालम से कर देगा। रसिया बालम ने हसते -हसते शर्त को स्वीकार कर दिया और मांउट आबू स्थित मां अर्बुदा देवी को नमन कर जी जान से झील को अपने नाखूनों से खोदना शुरू कर दिया। इधर कुंवारी कन्या की मां को यह विवाह प्रस्ताव किसी भी किमत पर मंजूर नहीं था। कुंवारी कन्या की मां ने इस शर्त को पूरा होने से रोकने के लिए छल कपट का सहारा लिया। इधर झील की खुदाई रसिया बालम भोर होने से पहले खोदकर कुंवारी कन्या के पिता के पास जाने के लिए निकला,जैसे हीं कुंवारी कन्या की मां ने मुर्गे का रूप धारण कर कूकडू कू की बांग दे दी। रसिया बालम ने मुर्गे की बांग को भोर की घोषणा मान ली और निराश होकर वहीं पर अपने प्राण त्याग दिए। लेकिन मरते-मरते वो कुंवारी कन्या की मां के मायाजाल को समझ गया और उसे श्राप दे दिया। श्राप देते हीं कुंवारी कन्या की मां भी उसी जगह पर पत्थर की मूर्ति बन गई। इस धार्मिक प्रेम कहानी का अंत जितना दर्दनाक है उससे कहीं ज्यादा तकलीफदेह है इसका ऐतिहासिक दृष्टि से उपेक्षित होना। अगर इस प्रेम कहानी का दस्तावेजीकरण कर दिया जाए तो इस अमर प्रेम गाथा को इतिहास में उचित स्थान मिल जाएगा और यह अमर प्रेम गाथा पूरे मारवाड़,गोड़वाड़,आदिवासी इलाके में विशेष रूप से राजस्थानी गीतों के माध्यम से लोकगीतों से बाहर निकलकर शायद विश्व की ऐतिहासिक प्रेमगाथाओं में अपना स्थान बना लें।
प्रेमी जोड़े आज भी कुंवारी कन्या की मां को मारते है पत्थर
मांउट आबू की हसीन वादियों में पिकनिक मनाने के लिए देश-विदेश के कोने-कोने से सैकड़ों लोग आते है। इस दौरान प्रेमी जोड़े व अन्य लोग आज भी विश्व के प्रख्यात देलवाड़ा मंदिर के पीछे स्थित रसिया बालम के मंदिर पर जाकर वहां मौजूद कुंवारी कन्या की मां की मूर्ति पर पत्थर मारते है। ये परंपरा सदियों से चली आ रहीं है,जिस कारण आज यह मूर्ति पत्थरों के अंबार के नीचे आज भी विद्यमान है।
वह झील आज ‘नक्की झील’ के नाम से प्रसिद्ध है
रसिया बालम द्वारा खोदी गई झील आज नक्की झील के नाम से प्रसिद्ध है। माउंट आबू में आने वाला हर कोई शख्स इस नक्की झील में बोट की सवारी का आंनद लेना नहीं भूलता। आज नक्की झील मांउट आबू की अमूल्य धरोहर है लंबी चौड़ी यह झील पानी से हरवक्त भरी हुई रहती है और यहा आने वाला प्रत्ये पर्यटक अपनी यादें संजोकर जाता है।
मां अर्बुदा देवी का शक्तिपीठ जहां दर्शन को आते है श्रद्धालु
माउंट आबू स्थित कात्यायीनी शक्तिपीठ मां अर्बुदा देवी का मंदिर आज भी श्रद्धालुओं की रेलमपेल से भरा रहता है। इस शक्तिपीठ पर सैकड़ों श्रद्धालु दर्शक करने के लिए आते है। माउंट आबू आने वाला हर पर्यटक माता के दर्शन करना नहीं भूलता। मां अर्बुदा देवी के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को पहाड़ी के अंदर बने मंदिर में जाना पड़ता है उससे पूर्व उनकों पहाड़ी के नीचे झुकना पड़ता है तभी अंदर जा पाते है।
संकलन---हर्ष माली,भजन गायक व लेखक बालोतरा।
संवाददाता चेतन सुन्देशा 9414532417
माउंट आबू। कहते है कि प्रेम दिमाग की एक रूमानी उड़ान है। इसी रूमानी उड़ान की गिरफ्त के चलते प्रेम गं्रथों में कई प्रेमी जोड़ों के नाम इतिहास में दर्ज हो गए,किसी ने इसे रास्ते का पत्थर बनाया तो किसी ने उल्फत का मंदिर। प्यार मगरूर भी है और सुरूर भी। कहते है मांउट आबू की हसीन वादियों में प्रेमी जोड़े ‘रसिया बालम’ ने अपने प्यार की खातिर नाखूनों से हीं झील को खोद डाली।
माउंट आबू का सौंदर्य जितना खूबसूरत है उससे कहीं ज्यादा मार्मिक है इन वादियों में दफन ‘रसिया बालम’ और कुंवारी कन्या की प्रेम गाथा की गवाहीं देता हुआ प्रतीत होता है। इस प्रेम गाथा को आज भी मारवाड़ के हर इलाके में घर-घर गाया जाता है।
मंदिर में रसिया बालम व कुंवारी कन्या की प्रतिमा आज भी मौजूद
माउंट आबू के विख्यात देलवाड़ा मंदिर के पीछे एक मंदिर में रसिया बालम और कुंवारी कन्या की मूर्ति आज भी मौजूद है। मंदिर के बाहर पत्थरों के ढ़ेर के नीचे दफन है इस प्रेम कहानी की खलनायिका कुंवारी कन्या की मां मूर्ति जिसे रसिया बालम ने श्राप देकर पत्थर बना दिया था।
यह है इस प्रेम गाथा का इतिहास
रसिया बालम माउंट आबू में मजदूरी करने के लिए आया था और उसने वहां पर कुंवारी कन्या को देखा तो उसे देखते हीं प्यार में पड़ गया। कुछ ऐसा हीं हाल कुंवारी कन्या का भी हुआ। धीरे-धीरे ये प्यार परवान चढऩे लगा। बताया जाता है कि एक दिन रसिया बालम ने कुंवारी कन्या के पिता के सामने उसकी बेटी से विवाह का प्रस्ताव रख दिया। कुंवारी कन्या के पिता ने प्रस्ताव तो स्वीकार कर लिया,लेकिन इसके बदले में एक शर्त रसिया बालम के सामने रख दी। कुंवारी कन्या के पिता ने उस शर्त में कहा कि अगर वो भोर(सूर्योदय) होने से पहले एक झील को अपने नाखूनों से खोद कर उसके पास आएगा तो वह अपनी बेटी की शादी रसिया बालम से कर देगा। रसिया बालम ने हसते -हसते शर्त को स्वीकार कर दिया और मांउट आबू स्थित मां अर्बुदा देवी को नमन कर जी जान से झील को अपने नाखूनों से खोदना शुरू कर दिया। इधर कुंवारी कन्या की मां को यह विवाह प्रस्ताव किसी भी किमत पर मंजूर नहीं था। कुंवारी कन्या की मां ने इस शर्त को पूरा होने से रोकने के लिए छल कपट का सहारा लिया। इधर झील की खुदाई रसिया बालम भोर होने से पहले खोदकर कुंवारी कन्या के पिता के पास जाने के लिए निकला,जैसे हीं कुंवारी कन्या की मां ने मुर्गे का रूप धारण कर कूकडू कू की बांग दे दी। रसिया बालम ने मुर्गे की बांग को भोर की घोषणा मान ली और निराश होकर वहीं पर अपने प्राण त्याग दिए। लेकिन मरते-मरते वो कुंवारी कन्या की मां के मायाजाल को समझ गया और उसे श्राप दे दिया। श्राप देते हीं कुंवारी कन्या की मां भी उसी जगह पर पत्थर की मूर्ति बन गई। इस धार्मिक प्रेम कहानी का अंत जितना दर्दनाक है उससे कहीं ज्यादा तकलीफदेह है इसका ऐतिहासिक दृष्टि से उपेक्षित होना। अगर इस प्रेम कहानी का दस्तावेजीकरण कर दिया जाए तो इस अमर प्रेम गाथा को इतिहास में उचित स्थान मिल जाएगा और यह अमर प्रेम गाथा पूरे मारवाड़,गोड़वाड़,आदिवासी इलाके में विशेष रूप से राजस्थानी गीतों के माध्यम से लोकगीतों से बाहर निकलकर शायद विश्व की ऐतिहासिक प्रेमगाथाओं में अपना स्थान बना लें।
प्रेमी जोड़े आज भी कुंवारी कन्या की मां को मारते है पत्थर
मांउट आबू की हसीन वादियों में पिकनिक मनाने के लिए देश-विदेश के कोने-कोने से सैकड़ों लोग आते है। इस दौरान प्रेमी जोड़े व अन्य लोग आज भी विश्व के प्रख्यात देलवाड़ा मंदिर के पीछे स्थित रसिया बालम के मंदिर पर जाकर वहां मौजूद कुंवारी कन्या की मां की मूर्ति पर पत्थर मारते है। ये परंपरा सदियों से चली आ रहीं है,जिस कारण आज यह मूर्ति पत्थरों के अंबार के नीचे आज भी विद्यमान है।
वह झील आज ‘नक्की झील’ के नाम से प्रसिद्ध है
रसिया बालम द्वारा खोदी गई झील आज नक्की झील के नाम से प्रसिद्ध है। माउंट आबू में आने वाला हर कोई शख्स इस नक्की झील में बोट की सवारी का आंनद लेना नहीं भूलता। आज नक्की झील मांउट आबू की अमूल्य धरोहर है लंबी चौड़ी यह झील पानी से हरवक्त भरी हुई रहती है और यहा आने वाला प्रत्ये पर्यटक अपनी यादें संजोकर जाता है।
मां अर्बुदा देवी का शक्तिपीठ जहां दर्शन को आते है श्रद्धालु
माउंट आबू स्थित कात्यायीनी शक्तिपीठ मां अर्बुदा देवी का मंदिर आज भी श्रद्धालुओं की रेलमपेल से भरा रहता है। इस शक्तिपीठ पर सैकड़ों श्रद्धालु दर्शक करने के लिए आते है। माउंट आबू आने वाला हर पर्यटक माता के दर्शन करना नहीं भूलता। मां अर्बुदा देवी के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को पहाड़ी के अंदर बने मंदिर में जाना पड़ता है उससे पूर्व उनकों पहाड़ी के नीचे झुकना पड़ता है तभी अंदर जा पाते है।
संकलन---हर्ष माली,भजन गायक व लेखक बालोतरा।
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