बाड़मेर जिले के सिवाना कस्बे में अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त मशहुर कव्वाल जाहिद नाजां का कार्यक्रम....बोले- बचपन से ही था कव्वाली का शौक....
बालोतरा / सिवाना। हिंदुस्तान के मशहुर कव्वालो में शुमार अंतर्राष्ट्रीय फिल्मी फनकार जाहिद नाजां जिनकी कव्वाली ‘चढ़ता सुरज धीरे धीरे’ ने पूरे देश ही नही वरन् सात समंदर पार भी उन्हें बखूबी पहचान दिलवाई और हर उम्रवर्ग के शख्स को अपना कायल कर दिया। यही कारण था कि देश के कोनें कोनें में इन्हें अपना कार्यक्रम देने के लिये बुलाया गया। इसके साथ ही विदेशों से भी उन्हें कई आमंत्रण प्राप्त हुए और विदेशी सरजमीं पर भी जाहिद नाजां ने अपनी आवाज का खुब जादू बिखेरा। गुरूवार रात बाड़मेर जिले के सिवाना कस्बे में महफिल-ए-कव्वाली में शिरकत करने आए जाहिद नाजां ने पत्रकार जीत जांगिड़ से विशेष साक्षात्कार में अपने अनुभव साझा किएए प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश।
पत्रकार- देश के मशहूर फनकारों में आपका नाम हैं, आपको कव्वाली का शौक कबसे हैं?
जाहिद नाजां- मुझे कव्वाली का शौक बचपन से ही हैं। बचपन में कव्वाली सुनता था और फिर गाने का प्रयास करता। करीब 13 वर्ष की आयु में मैने गाना शुरू किया था।
पत्रकार- आपकी सबसे पसंदीदा कव्वाली कौनसी हैं?
जाहिद नाजां- (मुस्कुराकर...) वही, जो आप सबकी पसंद हैं और जिसके कारण मैं इस मुकाम पर हूं। जिसके कारण मुझे ये लोकप्रियता हासिल हुई हैं। (गुनगुनाते हुए...) चढ़ता सुरज धीरे धीरे, ढलता हैं ढल जाएगा।
पत्रकार- ये कव्वाली गाने की प्रेरणा आपको कहां से मिली?
जाहिद नाजां- दरअसल ये मेरे चाचा अजिज नाजां ने लिखी थी और उन्हीं की प्रेरणा से मुझे ये गाने का मौका मिला।
पत्रकार- चढता सूरज धीरे धीरे से आपको पहचान मिली, इसके बाद विदेशों से भी बुलावा आया?
जाहिद नाजां- जी हां, इस कव्वाली की दिवानगी का आलम इस कदर था कि इसके बाद सात समंदर पार से भी कई बुलावे आए और मैने अमेरिका, लंदन, ईराक, कुवैत में भी अपने कार्यक्रम किए।
पत्रकार- आज आप सिवाना में हैं, राजस्थान में इससे पहले भी आपने कार्यक्रम किये हैं, कैसा लग रहा हैं?
जाहिद नाजां- बहुत अच्छा, इससे पहले मैं कई बार अजमेर शरीफ पर कार्यक्रम में आ चुका हूं। राजस्थान की जनता का अपार प्यार और स्नेह मिलता रहा हैं, यही मुहब्बत मुझे अक्सर यहां रेगिस्तान में खींच लाती हैं।
बालोतरा / सिवाना। हिंदुस्तान के मशहुर कव्वालो में शुमार अंतर्राष्ट्रीय फिल्मी फनकार जाहिद नाजां जिनकी कव्वाली ‘चढ़ता सुरज धीरे धीरे’ ने पूरे देश ही नही वरन् सात समंदर पार भी उन्हें बखूबी पहचान दिलवाई और हर उम्रवर्ग के शख्स को अपना कायल कर दिया। यही कारण था कि देश के कोनें कोनें में इन्हें अपना कार्यक्रम देने के लिये बुलाया गया। इसके साथ ही विदेशों से भी उन्हें कई आमंत्रण प्राप्त हुए और विदेशी सरजमीं पर भी जाहिद नाजां ने अपनी आवाज का खुब जादू बिखेरा। गुरूवार रात बाड़मेर जिले के सिवाना कस्बे में महफिल-ए-कव्वाली में शिरकत करने आए जाहिद नाजां ने पत्रकार जीत जांगिड़ से विशेष साक्षात्कार में अपने अनुभव साझा किएए प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश।
पत्रकार- देश के मशहूर फनकारों में आपका नाम हैं, आपको कव्वाली का शौक कबसे हैं?
जाहिद नाजां- मुझे कव्वाली का शौक बचपन से ही हैं। बचपन में कव्वाली सुनता था और फिर गाने का प्रयास करता। करीब 13 वर्ष की आयु में मैने गाना शुरू किया था।
पत्रकार- आपकी सबसे पसंदीदा कव्वाली कौनसी हैं?
जाहिद नाजां- (मुस्कुराकर...) वही, जो आप सबकी पसंद हैं और जिसके कारण मैं इस मुकाम पर हूं। जिसके कारण मुझे ये लोकप्रियता हासिल हुई हैं। (गुनगुनाते हुए...) चढ़ता सुरज धीरे धीरे, ढलता हैं ढल जाएगा।
पत्रकार- ये कव्वाली गाने की प्रेरणा आपको कहां से मिली?
जाहिद नाजां- दरअसल ये मेरे चाचा अजिज नाजां ने लिखी थी और उन्हीं की प्रेरणा से मुझे ये गाने का मौका मिला।
पत्रकार- चढता सूरज धीरे धीरे से आपको पहचान मिली, इसके बाद विदेशों से भी बुलावा आया?
जाहिद नाजां- जी हां, इस कव्वाली की दिवानगी का आलम इस कदर था कि इसके बाद सात समंदर पार से भी कई बुलावे आए और मैने अमेरिका, लंदन, ईराक, कुवैत में भी अपने कार्यक्रम किए।
पत्रकार- आज आप सिवाना में हैं, राजस्थान में इससे पहले भी आपने कार्यक्रम किये हैं, कैसा लग रहा हैं?
जाहिद नाजां- बहुत अच्छा, इससे पहले मैं कई बार अजमेर शरीफ पर कार्यक्रम में आ चुका हूं। राजस्थान की जनता का अपार प्यार और स्नेह मिलता रहा हैं, यही मुहब्बत मुझे अक्सर यहां रेगिस्तान में खींच लाती हैं।
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