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Tuesday, January 13, 2015

मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान पुण्य का है विशेष महत्व

त्यौंहारों के देश भारत का एक त्यौहार है मकर संक्रांति। यह त्यौहार देश के हिस्सों मैं अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। कहीं पर इसे मकर संक्रांति कहा जाता है तो कहीं पर पोंगल। जिस प्रकार तिल और गुड के मिलने से मीठे-मीठे लड्डू बनते हैं उसी तरह जीवन में भी ख़ुशियों की मिठास बनी रहे और आकाश में पतंगें उड़ाती है उसी तरह जीवन मैं नित-नई ऊर्जा का संचार हो।इसी शुभकामना के साथ सूर्य पर्व मकर संक्रांति पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है और भारत वर्ष मैं जयपुर शहर तो अपनी पतंगबाजी के लिए बेहद प्रसिद्ध है। पतंगबाजी का मजा लेने के लिए देश-विदेश से लोग यहाँ पर आते हैं और विदेशी पर्यटक भी यहाँ पतंग उड़ाते हैं। जयपुर की फीनी तो बहुत प्रसिद्ध है पकोड़ी और फीनी को साथ मे खाने का आनंद लिया जाता है। इस दिन तिल से बने व्यंजनों का सेवन किया जाता है, रंग-बिरंगी पतंगें आसमान मे उडती नजर आती है और उन्मुक्त आकाश में उडती पतंगों को देखकर मन में स्वतंत्रता का अहसास  होता है। हर तरफ वो काटा वो मारा का शोर सुनाई देता है जो मन मे एक नई उमंग और नया जोश भर देता है।सूर्य के इस पर्व मकर संक्रांति को महापर्व का दर्जा दिया जाता है। धार्मिक मान्यता भी इस महापर्व के साथ जुड़ी  हुई है। मकर संक्रांति पर गंगा में स्नान करने पर सभी कष्टों का  निवारण  होता है।
 इस दिन दिया गया दान विशेष फल देने वाला होता है। वेदों और पुराणों में इस दिन का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति के दिन पवित्र गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था। सूर्य के धनु मकर राशि में प्रवेश को उत्तरायण माना जाता है। इस राशि परिवर्तन के साथ ही इसे मकर संक्रांति कहते है। इसी दिन हमारी धरती एक नए वर्ष और सूर्य एक नई गति में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति से प्रकृति भी करवटें बदलती है। इसकी अंग्रेजी तिथि भी प्राय: 14 जनवरी रहती है। हरियाणा और पंजाब में इसे लोहिडी की रूप मैं मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश और बिहार मैं इसे खिचड़ी कहा जाता है और दान का पर्व माना जाता है।तमाम मान्यताओं के बाद इस त्यौहार को मनाने के पीछे एक ही तर्क रहता है वह है सूर्य की उपासना और दान पुण्य का दिन। मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त  में स्नान, दान पुण्य का विशेष महत्व है और शरीर पर गुड व तिल लगाकर नर्मदा में स्नान करना लाभदायक होता है। ऐसा कहा जाता है कि गंगा जमुना और सरस्वती के पवित्र संगम पर प्रयाग में मकर संक्रांति के पर्व के दिन सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलने के लिए स्नान करने आते हैं। इसलिए वहां पर मकर संक्रांति के दिन स्नान करना बहुत पुण्यदायी माना जाता है। ज्योतिषशास्त्रियों के ग्रंथो में वर्णन है कि सूर्य के संक्रमण काल में जो मनुष्य स्नान नहीं करता वह सात जन्मों तक रोगी निर्धन तथा दु:ख भोगता रहता है। इस दिन कम्बल दान से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।उत्तर भारत में तो गंगा-यमुना के किनारे बसे गाँवों और नगरी में तो मेलों का आयोजन होता है। पोराणिक कथा यह है कि इस दिन गंगा जी स्वर्ग से उतर कर भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम में जाकर मिल गई। गंगा के पावन जल से ही राजा सगर के साठ हजार श्रापित पुत्रों का उद्धार हुआ था।राजस्थान में इस पर्व पर सुहागिन महिलाएँ अपनी सास को बायना देकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करती है। साथ ही महिलाएँ किसी भी सोभाग्यसुचक वस्तु चोदह की संख्या में पूजन और संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान मैं देती है। गलता कुंड में स्नान कर श्रद्धालुगण पुण्य भी कमाते हैं।इस पर्व का ऐतिहासिक महत्व भी है। महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग इसी दिन किया था। 1761 में इसी दिन पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठा सेना की पराजय से भारत में हिन्दू राज्य का स्वप्न टूट गया था। कुछ विद्वानों के अनुसार ईसा का जन्म भी इसी दिन हुआ था।इस तरह से मकर संक्रांति का पर्व धार्मिक और एतिहासिक मान्यताओ से जुड़ा है और साथ ही जीवन में एक नई ऊर्जा और उत्साह लेकर आता है ताकि हम फिर एक नई उम्मीद और हौंसले के साथ खड़े हो और समाज मे एकजुटता के साथ रहे। कहते हैं कि गजक, रेवड़ी में पड़े तिल गुड आदि आपस मैं सामाजिक समरसता के भी संदेशवाहक है।
लेखक---हर्ष माली, भजन गायक,बालोतरा। 

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