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Saturday, January 3, 2015

श्रीकृष्ण की लीला से बढकर कोई अृमत नही : डॉ. शास्त्री

बालोतरा। वेदो में परमात्मा को रसरूप माना है। परमात्मा रसरूप हैं उस रस में जो रमता है उसे रासलीला कहा जाता है। भागवत में श्री वेद व्यास जी ने एक अद्भूत रासलीला का रूपक बना है जिसके श्रवण मात्र से मानव के मन पर एक अलौकिक आकर्षण पैदा होता है। यद्यपि इनमें गोपियों की विरह गाथा का वर्णन है और भक्त प्रेमी है राधा और माधव प्रेमावतार है।
ये कथन स्थानीय घांची समाज भवन में आयोजित भागवत सप्ताह के पांचवे दिन कथावाचक डॉ. रामस्वरूप शास्त्री महाराज ने कथा सुनने आए श्रद्धालुओं को प्रवचन देते हुए कहे। इस दौरान शास्त्री जी ने कहा कि प्रेम निर्गुण भी है और सगुण भी है सहयोग में सगुण है और वियोग में निर्गुण। वृंदावन प्रत्येक भारत के नागरिको की आस्था का केन्द्र है। शास्त्री के मुखारविंद से भगवान श्री कृष्ण की रासलीलाएं सुनकर श्रद्धालु भावविभोर होकर श्री कृष्ण की भक्ति में डुब गए और भक्ति गीतों पर झुमने लगे। इस दौरान बडी संख्या में भीड उपस्थित थी। 

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