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Friday, July 25, 2014

जो शरीर पर अटका, वह जीवन से भटका : पद्मसागरसूरिश्वर महाराज

बालोतरा। राष्टंसंत आचार्य पद्मसागरसूरीश्वर महाराज ने कहा कि विवाह से
पहले विजातिय परिचय पतन के मार्ग पर ले जाता है। ब्रह्मचर्य आश्रम की व्यवस्था समाज के व्यापक हितों को देखकर निर्धारित की गई थी। किसी जमाने में कन्या व युवक के सद्गुणों को देखकर विवाह तय होते थे। आज धन और चमड़ी देखकर शादियां होती हैं। निश्चय ही जो शरीर पर अटकता है, वह जीवन से भटक जाता है। नाकोड़ा जैन तीर्थ के प्रांगण में सामूहिक चातुर्मासिक आराधना में शुक्रवार को विराट् धर्मसभा में आचार्य प्रवर ने यह बात कही। आचार्य हरिभद्रसूरि महाराज के प्राचीन धर्मबिन्दु ग्रंथ में उल्लेखित विवाह के व्यवहार की चर्चा करते हुए उन्होने कहा कि अभी-अभी जर्मनी के रिसर्च बताते हैं कि सदाचार ही जीवन के लिए वरदान है। वहां ब्रह्मचारी और दुराचारीव्यक्तियों के खून, थूक, पसीने व मल मूत्र के लिए किये गये नमूने और उनसे किये गये प्रयोग यह सिद्ध करते हैं कि ब्रह्मचर्य से दूसरों की काया और मन को रोगमुक्त-निरोगी बनाया जा सकता है तथा दुराचार स्वस्थ मनुष्य के तन-मन को बर्बाद कर सकता है।
आचार्य पद्मसागरसूरीश्वर महाराज ने जोर देकर कहा कि भारतीय संस्कृति तो सदैव ब्रह्मचर्य और सदाचार की जीवनषैली का संदेश देती आयी है। सदाचार के असीम सुख है। ब्रह्मचारी को देवता भी नमस्कार करते हैं। नारदजी ब्रह्मचारी होते हैं, वे कभी नरक में नहीं जाते। पवित्र विचार जीवन और समाज के लिए वरदान है। सदाचार को छोडऩा आत्मघातक है। आने वाले दिनों में भोग और दुराचार के खतरनाक परिणाम समाज के लिए अत्यन्त दु:खद सिद्ध होने वाले है।
ओजस्वी प्रवचनकार मुनि विमलसागर महाराज ने कहा कि ज्ञानी कभी खेद नहीं करते और दु:खी नहीं होते। ज्ञानी बन जाने के बाद वे दुसरों के अज्ञान को दुर करने का निर्मल पुरूषार्थ करते हैं। ज्ञानी का यही सार है। अज्ञानी और नादान मनुष्य बाहरी रूप-रंग और पुद्गलों व प्रक्रियाओं को देखता है। जबकि ज्ञानी व्यक्ति भीतर की भावनाओं और गुणों को देखतें। जो बाहर से प्राप्त किया जाता है, वह नष्ट भी हो जाता है, किन्तु जो भीतर से उपलब्ध किया जाता है, वो वास्तविक और शाश्वत होता है। मुनि विमलसागर महाराज ने आगे कहा कि ज्ञानी शरीर, धन, सश्रा और संबंधों को नहीं देखते। उनका नजरिया साधना,  गुणों के सŸव और सदाचार का होता है। अज्ञानी इधर-उधर के तुच्छ पदार्थो को पाने और संभालने में मूल्यवान जीवन व्यर्थ कर देता है। इसीलिए ज्ञानवान् बनना ही मनुष्य जीवन की सार्थकता है। मुनिवर ने आगे कहा कि भारतीय महापुरूषों के चरित्र साधना और ज्ञान के अमर षिलालेख हैं। इसीलिए भारतीय संस्कृति और यहां की उज्जवल परंपराएं विष्वभर में सिरमौर रही है। यहां का साहित्य सामान्य जानकारियों से नहीं, अलौकिक-अप्रतिम ज्ञान से सिंचित हुआ है। सरस्वती सदैव भारत के कण-कण में जीवंत रही है। आसपास के गांवों-शहरों के श्रद्धालु बड़ी संख्या में धर्मसभा में उपस्थित थे। चातुर्मास संयोजक समिति के गणपत पटवारी ने सभी का स्वागत किया। नाकोड़ा तीर्थ के टंस्टी उश्रमचंद मेंहता और मदन सालेचा व्यवस्थाओं का जायजा लेकर चातुर्मास को सफल बनाने में जुटे हैं। पंन्यास देवेन्द्रसागर ने भी धर्मसभा को संबंधोति किया। श्रावण शुक्ल एकम, रविवार को विषेष आयोजन आयोजनों के कुषल शिल्पी मुनि विमलसागर महाराज ने जानकारी दी कि श्रावण शुक्ल प्रतिपदा को रविवार के दिन महामांगलिक व नवग्रह के संगीतमय मंत्रजाप का विशेष आयोजन होगा। नूतन माह के उपलक्ष्य में हंीॅकार ध्यान का भावप्रद कार्यक्रम होगा। तीन हजार से अधिक श्रद्धालु इस आयोजन में भाग लेने के लिए विभिन्न प्रांतो से नाकोड़ा तीर्थ पहुंच रहे हैं।

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