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Tuesday, July 22, 2014

प्रभुभक्ति दुर्गुणों से हमारा रक्षण करती है : आचार्य पदमसागरसूरीश्वर

नाकोड़ा जैन तीर्थ में चार्तुमास के दौरान प्रवचन सुनने उमड़ रहे है श्रावक श्राविकाएं
बालोतरा। मूर्तिपूजक जैन संप्रदाय के वरिष्ठ आचार्य पदमसागरसूरीश्वर महाराज ने कहा कि दुर्गुण मनुष्य को बेहद परेशान करते है,गरीबी दुर्भाग्य है। दुर्गुण साधना पथ से मनुष्य को भटकाकर बर्बाद कर देते है। एक दुर्गुण अनेक दुर्गुणों को ले आता है। दुर्गुणों की जमात का संगठन गजब है,दुर्गुणों से बचकर ही दुर्गति से बचा जा सकता है। ये उद्गार आचार्य प्रवार ने मंगलवार को नाकोड़ा जैन तीर्थ परिसर में विराट धर्मसभा में प्रकट किए। द्विमासीक आराधना के लिए आए 1650 साधकों और अन्य सैकड़ों श्रद्धालुओं को मार्गदर्शन देते हुए उन्होंने कहा कि परमात्मा का सतत अनुग्रह मानकर सज्जनों के सानिध्य में रहना चाहिए। भक्तियोग में अद्भुत शक्ति है। प्रभुभक्ति दुर्गुणों से हमारा रक्षण करती है। प्रभु का अनुग्रह अहंकार का विद्यलन करता है। आचार्य पदमसागरसूरीश्वर महाराज ने कहा कि सज्जनों की संगति दुर्गुणों को दूर रखती है। सज्जन और संतजन जीवन के उपकारक तत्व है,दुर्गुण वहां परास्त हो जाते है। झूठ चोरी जुआ धूम्रपान शराब ये सब ऐसे दुर्गुण है जो एक दूसरे को अपने साथ लाते है। अत:छोटे से एक दुर्गुण को जीवन में प्रविष्ट न होने देना ही मनुष्य के ज्ञान की परीक्षा है। आचार्य श्री ने आगे कहा कि आसक्ति दुख लाती है,इच्छा-तृष्णा को कम करके ही सुख का अनुसंधान हो सकता है। इच्छाएं आकाश के समान अनंत है। इनका कहीं अंत नहीं है,सभी इच्छाओं को कोई पूर्ण नहीं कर सकता है। इच्छाओं का निरोध हीं इच्छाओं की पूर्णता है,जीवन अल्प और मूल्यवान है,इसे इच्छाओं और कामनाओं के पीछे व्यर्थ नहीं करना चाहिए। प्रवचन प्रभाकर मुनि विमलसागर महाराज ने कहा कि सहजीवन समाज की व्यवस्था है।
नाते रिश्ते मनुष्य के जीवन की प्रेरणा है। अकेले रहना मुनासिब नहीं है,साथ रहकर ही जीवन पथ सुगमता से कट सकता है। अत:संबंध बनाना और संबंधों के लिए जीना मनुष्य की अनिवार्यता है। अकेलापन दिमाग में पागलपन ला सकता है,साथ रहकर सुख दुख बांटे जा सकते है। इसलिए नाते रिश्ते,संबंध सगाई,प्रीति मैत्री,भक्ति आत्मीयता आदि मानवीय समाज की अत्यंत पुरानी व्यवस्थाए है। मुनि विमलसागर महाराज ने कहा कि नाते रिश्ते मधुरता और पवित्रता से जीवंत रहते है। संबंधों की सभी सार्थकता है,व्यवहारिक जीवन की यही वास्तविकता है। गलत संबंध दुख लाते है और अच्छे पवित्र संबंध मनुष्य के जीवन में सुख शांति का वरदान फिर संबंधों की सगाई भगवन गुरू धर्म सदाचार और ज्ञान के प्रति भी होनी चाहिए। ये संबंध जीवन कल्याण और अध्यात्म की साधना का सूत्रपात करते है। भगवान संत सदाचार और ज्ञान के प्रति मनुष्य का प्रेम संबंध ही इस पृथ्वी का सौभाग्श् है। मंगलवार को जाने माने ओर्थोपैडिक डॉक्टर नागौर के निवासी अमेरिका से शिक्षित प्रकाश बैंगानी का नाकोड़ा तीर्थ की ओर चार्तुमास संयोजक गणपत पटवारी ने सम्मान किया। ट्रस्टी उत्तमचंद मेहता व मदन सालेचा ने उन्हें स्मृति चिन्ह भेंट किया।

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