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Thursday, July 24, 2014

भक्ति है मुक्ति का मार्ग : विमलसागर महाराज

नाकोड़ा तीर्थ में चार्तुमास में प्रवचन सुनने उमड़ रहे है श्रावक-श्राविकाएं
बालोतरा। राष्ट्रसंत आचार्य पद्मसागरसूरीश्वर महाराज के शिष्य प्रवचन प्रभाकर मुनि विमलसागर महाराज ने कहा कि ज्ञानयोग और तपयोग कठिन है। भक्तियोग सबसे सरल है। भक्ति में अद्भूत शक्ति है। पवित्र मन से की गई भक्तियोग की साधना मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। कलिकाल में भक्ति ही आध्यात्मिक उन्नति का सबसे सरल साधन है। भगवान, भक्त और भक्ति जब एकाकार हो जाते हैं तो वही क्षण हजारों - लाखों जन्मों के बंधनों को तोडक़र आत्मा को मुक्ति दिला देते हैं।
नाकोड़ा जैन तीर्थ में चल रही सामूहिक चातुर्मासिक आराधना के दौरान् गुरूवार को विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनिवर ने यह बात कही।
उन्होने आगे कहा कि चमड़े की आंख से नहीं, अन्र्तचक्षु - ज्ञानचक्षु से भगवान को देखने की कल सीखी जानी चाहिए। यह दर्षन प्रभु को सिर्फ देखना नहीं, निरखना- निहारना है। भगवान से भौतिक सामग्री मांगना तो याचक भाव है। यह मनुष्य के मन की तुच्छता है। ऐसी मांग से आध्यात्मिक उत्कर्ष नहीं होता। भगवान के समक्ष या तो उनके महान् गुणों का गान करना चाहिए अथवा अपने अवगुणों को प्रकट करते हुए उनके गुणों के साथ स्वयं की तुलना करनी चाहिए। ऐसा भक्तियोग ही कल्याणकारी होता है।
मुनि विमलसागर महाराज ने भक्तियोग की विस्तृत चर्चा करते हुए आगे कहा कि मन की सरलता और आंखो की पवित्रता प्रभुदर्षन को जीवंत बनाती हैं। मन को याचक नहीं भक्त बनाया जाना चाहिए। मांगना ही हो तो भगवान से यह मांगना चाहिए कि मुझे दु:ख सहने की शक्ति दो! सही निर्णय ले सकुं, ऐसा सामथ्र्य दो! दीन-दु:खी और संतो की सेवा कर सकुं, ऐसा बल दो! पाप से दुर रह सकुं, ऐसा ज्ञान दो।
मुनिवर ने आगे कहा कि यह दुर्भाग्य पूर्ण ही है कि लोग मांगने के लिए दिन-रात भगवान के दरबार में कतारों में खड़े रहते हैं। यह कितना हास्याष्पद है कि पाप और अपराध कर लोग भगवान से बचने-बचाने की कामना करते है। यह सरासर अन्याय और मूर्खता है। ऐसा भक्तियोग कभी सार्थक नहीं हो सकता।
आचार्य पद्मसागरसूरीश्वर महाराज ने कहा कि आचरण-भ्रष्ट व्यक्ति को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते। सदाचार ही साधना और सफलता का आधार है। ब्रह्मचर्य सभी साधनाओं का प्राण है। दुराचार से सड़े व्यक्ति सम्मान के नही, सर्वत्र तिरस्कार के पात्र होते हैं। नेत्रों से विकार दूर होने पर ही जीवन का विकास हो सकता हैं।
आचार्य प्रवर ने आगे कहा कि वासना ज्ञानतंतुओं को शिथिल बनाती है। भोग की अधिकता शारीरिक-मानसिक दुर्बलता लाती है। वासनाओं से विस्मरण बढ़ता है। मर्यादा पुरूषोश्रम भगवान राम का परिचय अपने परिवार के उत्कर्ष के लिए जरूरी है। गुणों का भंडार था समग्र रघुवंष। उनके आदर्ष हर घर और हर मनुष्य के लिए प्रेेरणा है। आज तो आहार, वेषभूषा, संगीत, सिनेमा, षिक्षण, मनोरंजन, फैषन और परिवेष--सभी में पाष्चात्य संस्कृति का आक्रमण है। सभी सामूहिक पतन के मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं, यह घोर दुर्भाग्यपूर्ण हैं।
गणिवर प्रशांतसागर महाराज ने कहा कि अच्छे-बुरे कर्म परलोक में साथ चलते हैं। यहां का इकेा किया हुआ यही रह जाता है। पत्नि घर के द्धार तक और मित्र- परिजन श्मषान घाट तक साथ चलते हैं। इसलिए अच्छे कर्म करना ही श्रेष्ठ हैं।
समारोह में हिण्डोन सीटी के निवासी (बालोतरा में सेवारत) डिस्ट्रीक्ट मेजिस्ट्रेट श्री गोयनका विशेष अतिथि के तौर पर उपस्थित थे। चातुर्मास समिति के संयोजक गणपत पटवारी ने नाकोड़ा तीर्थ की ओर से उनका तिलक-माल्र्यापण-साफा और स्मृतिचिन्ह से बहुमान किया। संत समुदाय से मुनि भुवनपद्मसागर महाराज ने निरंतर आठ दिन के उपवास की आज पूर्णाहूति की। मुनि कैलासपद्मसागर महाराज व मुनि महापद्मसागर महाराज नौ उपवास की तप-साधना के साथ आगे बढ़ रहे हैं। हजारों लोगों ने जय-जयकार के उद्घोष के साथ इन युवा मुनियों का भावभीना अभिवादन किया।

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