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Saturday, September 8, 2018

सन 1965 के पाक युद्ध मे शहीद आम नागरिकों के परिजनों को भूली सरकार

रेलवे शहीद दिवस
शहीद रेल कर्मियों को सलाम
*गडरारोड में शहीद मेले का आयोजन
देश व्यापी आव्हान पर 1965 के युद्ध मे सेना व रेलवे की मदद के दौरान शहीद हुए सिविलियन नागरिको की शहादत को भूली  भारत सरकार
ओमप्रकाश सोनी 9414532417
बाड़मेर
भारत-पाक युद्ध 1965,
टैंकों की गर्जना, लड़ाकू विमानों की बमबारी, चारों ओर गोलियों की बौछारें और हरपल दुश्मन देश के हवाई हमले, ऐसे में किसी भी दिलेर का हौसला परास्त होना मामूली बात है। पाकिस्तान ने सीमा पर जाने वाली रेल लाइन को छतिग्रस्त कर दिया था। इस दौरान देश की सेवा के आव्हान पर रेलकर्मियों व देश की सेवा का प्रण लेकर सीमा पर पहुचे आम नागरिकों ने अपने हौसले से जीवन रेखा रेल लाइन को दुरुस्त किया और युद्घ में सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सैनिक की तरह देश हित मे अपने प्राणों की बलिदानी दे दी। उसके बाद रेल कर्मियों के परिजनों को सरकारी मदद दी गई पर युद्ध मे शहीद होने वाले लोगो के परिजनों की पीठ थपथपा कर सरकार ने इति कर ली। लंबे समय बाद आज भी उस युद्ध मे शहीद होने वाले आम नागरिकों के परिजन गुमनामी के अंधेरे में जीवन यापन करने को मजबूर है।
तिलवाड़ा के शहीद खीमराज साईं के परिजनो को सरकारी बिजली का भी इंतजार-
कहा जाता है कि "शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा"
पर जब एक परिवार का लाल देश के काम आ जाता है तब उसके परिजनों की हालत का अंदाज लगाना मुश्किल नही होता है। तब परिजन सरकार से ही जीवन यापन के सहारे की उम्मीद करते है पर सन 1965 के युद्ध मे रेलवे के साथ काम करते हुए पाकिस्तानी बमबारी में शहीद होने वाले सिविल नागरिको की शहादत को सरकारों ने भुला दिया है। ऐसे ही एक शहीद खीमराज साई के भाई बताते है कि शहीद की शहादत के बाद से ही उनके परिजन सरकार से उन्हें सरकारी मदद देने की मांग कर रहे है पर सरकार के कान पर जूं तक नही रेंग रही है। कानाराम से पिछले 18 वर्षों से प्रधान मंत्री, राष्ट्र पति, रक्षा मंत्री सभी से पत्र व्यवहार कर सन 1965 के युद्ध मे शहीद हुए आम नागरिकों के परिजनों को सरकारी मदद देने की गुहार कर रहे है। पर सरकार का आलम यह है कि अभी तक उस शहिद के घर पर सरकार बिजली तक नही पहुचा पाई है। शहीद खीमराज साईं का परिवार तमाम सरकारी सुविधाओ से वंचित है
हौसले से लड़े-
वीर सपूतों का हौंसला दुगुना हो गया था। क्षतिग्रस्त रेल लाइन की मरम्मत करने की समस्या आई तो कई रेल कर्मचारी स्वेच्छा से आगे आए। सेना के लिए रसद व सैन्य सामग्री पहुंचाने  के लिए व पटरियां ठीक करने में ये रेलकर्मी ना होते तो सेना को काफी मुश्किल होती ।इनमें 17 रेल कर्मचारी शहीद हुए ।
भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने कच्छ के नगर पार इलो पर अपना दावा पेश किया, बदले में भारत ने पाक सेना को खदेड़ने तथा बाड़मेर से पाक कूच करने के लिए सिन्ध से मोर्चा खोलने के आदेश दिए । विकट परिस्थितियों में सैनिकों ने बहादुरी का परिचय देते हुए गडरासिटी में तिरंगा फहरा दिया । भारतीय सेना की इस कार्यवाही से हतप्रभ पाकिस्तान ने भविष्य के संदर्भ में आकलन कर गडरारोड कस्बे की रेललाइन को बम वर्षा से क्षतिग्रस्त कर  दिया । इसके परिणामस्वरूप अग्रिम मोर्चो पर डटी भारतीय सेना के लिए आवश्यक वस्तुओं और सैन्य सामग्री का संकट खडा हो गया ।हमारे शूरवीरों का मनोबल बनाये रखने और युद्ध को जीतने के लिए गडरारोड की रेलवे लाईन अर्थात् जीवन रेखा को दुरुस्त करने की आवश्यकता को प्राथमिकता दी गई । देश पर मर मिटने का यह सुनहरा अवसर पाकर रेलवे कर्मचारी तत्काल रेल लाईन को ठीक करने के लिए आगे आए । हवाई हमलों  एवं गोलाबारी के सिहरन भरे माहौल में काम पर जुट गए । पाकिस्तान को अपने घुसपैठिए से रेल लाईन ठीक करने की सूचना मिल चुकी थी । भारत के लिए यह जीवन रेखा  पाकिस्तान  के लिए मृत्यु  रेखा साबित  होगी  यह सोचकर  पाकिस्तान ने निशाना बनाने का आदेश  दिया । उधर हवाई हमलों से बेखबर रेलकर्मियो  ने तेजी से कार्य करते हुए रेल लाइन को ठीक कर दिया । जब ये रेल कर्मचारी काम खत्म करके रवाना हो रहे थे, इस दौरान पाक के विमानों ने बमबारी शुरु कर दी । इस अप्रत्याशित हमलें में  14 बहादुर कर्मचारी मातृभूमि की वेदी पर बलिदान हो गए ।
इस दौरान सैनिकों को खाद्य साम्रगी एवं युद्ध सामग्री पहुंचाने के लिए रेल ले जाना अत्यावश्यक था । ऐसे माहौल में वीर सपूत चालक चुनीलाल पंवार, फायरमैन  चिमनसिंह व माधोसिंह  ने  देश सेवा का बीड़ा उठाया । ये सीमा पर रेल के जरिए सामग्री पहुंचाने के लिए स्वेच्छा से आगे आए । जब ये गडरारोड पहुंचने के बाद वापिस बाड़मेर के लिए रवाना हुए तब दुश्मन ने चालबाज़ी से संचार व्यवस्था काट दी । पाकिस्तानी घुसपैठिए के गलत सिग्नल देने के कारण बाडमेर की तरफ से आ रही मालगाड़ी से गडरारोड से वापिस आ रहा इंजन टकरा गया । इसमें सवार तीनों रेल कर्मचारी देश की खातिर शहीद हो गए । रेल लाइन के साफ हो जाने के बाद सेना के  आयुध एवं आवश्यक सामग्री गडरारोड स्टेशन पहुंची तो  शहीद रेलवे कर्मचारियों की निष्ठा व बलिदान को याद कर सैन्य अधिकारियों के गले रुंध गये । भारत माता व अमर शहीदों के जयकारों से गडरारोड स्टेशन गूंज उठा । गैर सैनिकों की कुर्बानी की खबर जब मोर्चे पर डटे सैनिकों को मिली तो वे दुगुने जोश से दुश्मनों पर टूट पडे ।
रेलवे विभाग ने इन 17 रेल शहीदों की याद में प्रतिवर्ष शहीद मेला मनाने का निर्णय लिया । इसके अलावा गडरारोड से बाड़मेर की ओर करीब आधा-आधा किमी की दूरी पर स्थित दो शहीद घटनास्थलों पर रेलवे लाइन के पास स्मारक बनाने का निर्णय लिया । तब से प्रतिवर्ष इन शहादत स्थलों पर हजारों लोग एकत्रित होकर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं । गडरारोड स्टेशन भवन की दीवार पर संगमरमर के शिलाखंड पर भी इन 17 अमर शहीदों के नामपट्ट स्थापित हैं ।
इन शहीदों का बलिदान चिरस्मरणीय रहेगा ।

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