जो शहीद हुए हे उनकी जरा याद करो कुर्बानी .....
रिपोर्टर ओमप्रकाश सोनी स्वतंत्रता दिवस पर विशेष रिपोर्ट
बालोतरा। देश की आन बान और शान में किसी प्रकार की कमी नहीं आये इसके लिए बालोतरा उपखंड सहित जिले के अनेक नागरिको ने सन् १९६५ के पाकिस्थान युद्ध में सेनिको के समान सेना के कंधे से कन्धा मिलाकर देश के प्रति अपने फर्ज को निभाया। युद्ध में अनेक नागरिक सेनिको की मदद करते हुए शहीद भी हो गए। उन लोगो ने तो बिना अपने घर परिवार की चिंता किये अपने प्राण न्योछावर कर दिए परंतु उनके शहीद होने के दशको बाद भी उनके परिजन शहीद की शहादत का सिला मिलने का इन्तजार कर रहे है। कुछ ऐसी कहानी है सन् १९६५ में युद्ध के दौरान सेना की मदद करते समय शहीद होने वाले आम नागरिको की।
यूं तो उस युद्ध में कितने ही आम नागरिक शहीद हुए थे जिनके परिजन आज भी गुमनामी के अँधेरे में शहीद की याद में आंसु बहाते हुए दिन बिता रहे है। लेकिन उपखंड के तिलवाड़ा गांव में एक परिवार १९६५ के युद्ध में शहीद हुए घर के लाल व् जिले के अन्य शहीद नागरिको को सम्मान दिलवाने की लड़ाई लड़ रहा है। ये कहानी है तिलवाड़ा गांव के एक युवा खीमराज साईं की। सत्रह वर्ष की तरुण उम्र में सन् १९६५ में देश पर युद्ध की विपदा आई तो स्वयं प्रेरणा से गांव के दूसरे युवको के साथ सेना की मदद के लिए रेलवे के कार्मिको के साथ सीमा पर गए। युद्ध के दौरान सेना के लिए रसद सामग्री पहुचाते समय पाकिस्तान द्वारा की गयी बमबारी में वे रेलवे कार्मिको के साथ शहीद हो गए।
खीमराज के घर वालो को घर के लाल को खोने का मलाल तो था लेकिन देश के लिए कुर्बान होने का फक्र भी था। युद्ध खत्म होने के बाद सेना की और से उनकी परिजनों को पीठ थपथपाई गयी लेकिन किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं मिली। खीमराज की शहादत के बाद अभी तक भी सरकार की और से उनके परिजनों को खीमराज की शहादत का किसी भी प्रकार का सिला नहीं दे पाई है। उस युद्ध में खीमराज के साथ सेना की मदद करते हुए शहीद हुए अन्य नागरिको को भी अभी तक किसी प्रकार की सरकारी सहायत आदि नहीं मिली है। शहीद नागरिको के परिजन गुमनामी के अँधेरे में मुफलिसी में जीवन काट रहे है। खीमराज के भाई कानाराम, बालाराम साई ने बताया कि सन् १९६५ की लड़ाई में कुर्बान होने वाले आम नागरिको को सरकार ने शहादत के नाम पर एक प्रमाण पत्र तक नहीं दिया है।
कानाराम ने शुरू की हक़ के लिए लड़ाई-
शहीद खीमराज साई के भाई कानाराम साई ने अपने भाई सहित अन्य नागरिको को शहादत का सिला दिलाने के लिए संघर्ष शुरू किया है। पिछले २५ वर्षो में कानाराम शहीद के हक़ के लिए राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री से लेकर रेल मंत्रालय के चक्कर काट रहे है। कानाराम बताते है कि सरकारे बदलती रही लेकिन सन् १९६५ में सेना के साथ काम करते हुए मरने वाले शहीदों के परिजनों की सुध नहीं ले रही है। कानाराम ने उन शहीदों के परिजनों को केवल शहादत का प्रमाण पत्र देने की मांग की है। साथ ही परिजनों को नौकरी देने की मांग की है ताकि शहीदों के परिजन फक्र के साथ सर उठाकर जी सके।
रिपोर्टर ओमप्रकाश सोनी स्वतंत्रता दिवस पर विशेष रिपोर्ट
बालोतरा। देश की आन बान और शान में किसी प्रकार की कमी नहीं आये इसके लिए बालोतरा उपखंड सहित जिले के अनेक नागरिको ने सन् १९६५ के पाकिस्थान युद्ध में सेनिको के समान सेना के कंधे से कन्धा मिलाकर देश के प्रति अपने फर्ज को निभाया। युद्ध में अनेक नागरिक सेनिको की मदद करते हुए शहीद भी हो गए। उन लोगो ने तो बिना अपने घर परिवार की चिंता किये अपने प्राण न्योछावर कर दिए परंतु उनके शहीद होने के दशको बाद भी उनके परिजन शहीद की शहादत का सिला मिलने का इन्तजार कर रहे है। कुछ ऐसी कहानी है सन् १९६५ में युद्ध के दौरान सेना की मदद करते समय शहीद होने वाले आम नागरिको की।
यूं तो उस युद्ध में कितने ही आम नागरिक शहीद हुए थे जिनके परिजन आज भी गुमनामी के अँधेरे में शहीद की याद में आंसु बहाते हुए दिन बिता रहे है। लेकिन उपखंड के तिलवाड़ा गांव में एक परिवार १९६५ के युद्ध में शहीद हुए घर के लाल व् जिले के अन्य शहीद नागरिको को सम्मान दिलवाने की लड़ाई लड़ रहा है। ये कहानी है तिलवाड़ा गांव के एक युवा खीमराज साईं की। सत्रह वर्ष की तरुण उम्र में सन् १९६५ में देश पर युद्ध की विपदा आई तो स्वयं प्रेरणा से गांव के दूसरे युवको के साथ सेना की मदद के लिए रेलवे के कार्मिको के साथ सीमा पर गए। युद्ध के दौरान सेना के लिए रसद सामग्री पहुचाते समय पाकिस्तान द्वारा की गयी बमबारी में वे रेलवे कार्मिको के साथ शहीद हो गए।
खीमराज के घर वालो को घर के लाल को खोने का मलाल तो था लेकिन देश के लिए कुर्बान होने का फक्र भी था। युद्ध खत्म होने के बाद सेना की और से उनकी परिजनों को पीठ थपथपाई गयी लेकिन किसी प्रकार की आर्थिक मदद नहीं मिली। खीमराज की शहादत के बाद अभी तक भी सरकार की और से उनके परिजनों को खीमराज की शहादत का किसी भी प्रकार का सिला नहीं दे पाई है। उस युद्ध में खीमराज के साथ सेना की मदद करते हुए शहीद हुए अन्य नागरिको को भी अभी तक किसी प्रकार की सरकारी सहायत आदि नहीं मिली है। शहीद नागरिको के परिजन गुमनामी के अँधेरे में मुफलिसी में जीवन काट रहे है। खीमराज के भाई कानाराम, बालाराम साई ने बताया कि सन् १९६५ की लड़ाई में कुर्बान होने वाले आम नागरिको को सरकार ने शहादत के नाम पर एक प्रमाण पत्र तक नहीं दिया है।
कानाराम ने शुरू की हक़ के लिए लड़ाई-
शहीद खीमराज साई के भाई कानाराम साई ने अपने भाई सहित अन्य नागरिको को शहादत का सिला दिलाने के लिए संघर्ष शुरू किया है। पिछले २५ वर्षो में कानाराम शहीद के हक़ के लिए राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री से लेकर रेल मंत्रालय के चक्कर काट रहे है। कानाराम बताते है कि सरकारे बदलती रही लेकिन सन् १९६५ में सेना के साथ काम करते हुए मरने वाले शहीदों के परिजनों की सुध नहीं ले रही है। कानाराम ने उन शहीदों के परिजनों को केवल शहादत का प्रमाण पत्र देने की मांग की है। साथ ही परिजनों को नौकरी देने की मांग की है ताकि शहीदों के परिजन फक्र के साथ सर उठाकर जी सके।
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