रिपोर्ट @ ओमप्रकाश सोनी 9414532417
बालोतरा। कहते है कि जंहा चाह वहा राह और आसमान में भी छेद हो सकता है बस जरुरत है तबियत से एक पत्थर उछालने की। कुछ इन्ही पंक्तियों को सच कर दिखाया है समदड़ी तहसिल क्षेत्र के टिकमपुरा गांव के रहने वाले किसान मगाराम काग ने। लूणी नदी के किनारे बसे टिकमपुरा गांव में किसान सदियो से परंपरागत खेती करते आये है। लेकिन दिनों दिन घटते जलस्तर ने यहाँ रहने वाले किसानो के लिए खेती करना मुश्किल बना दिया है।
परंपरागत खेती से आय के स्रोत कम होने से किसान परेशान है। ऐसे में इस गांव के किसान मगाराम काग ने परंपरागत खेती से हटकर कुछ नया करने की सोची। फिर खेत में अनार लगाने की ठानी ताकि खेत में मेहनत के अनुरूप कमाई हो सके। फिर मगाराम ने अपने खेत के सात बीघा में अनार के 1400 पोधे लगाए। पानी की किल्लत के कारण अनार की खेती के लिए ड्रिप पद्धति से सिंचाई करनी शुरू की। शुरुवात में उनको अनार के पोधो को बचाने के लिए अनेक जतन करने पड़े। यूरिया खाद आदि से अनार में आशातीत वृद्धि नहीं होने पर मगाराम ने वापस से देशी कंपोस्ट खाद से अनार के पोधे पनपाए। मगाराम की 22 महीने की मेहनत रंग लाई। आज उसके खेत में अनार के पोधे लहलहा रहे है।
मगाराम ने बताया कि बालोतरा क्षेत्र के बुडीवाडा गांव में जब उन्होंने खारे पानी से अनार की खेती होते देखा तो उनके मन में भी अनार की खेती करने का विचार आया। बाद में उन्होंने बुडीवाडा के किसान नगाराम पौण ने उन्हें अनार की खेती के तरीको के बारे में जानकारी दी। अब मगाराम के खेत में पूर्णतः देशी खाद से उगाए गए अनार के पोधो से मिलने वाली फसल के लिए अग्रिम रूप से देश की बड़ी ख्यातिनाम कम्पनियो का उनके वहा पहुचना शुरू हो गया है। गांव के ही मांगीलाल रातडा व् हड़मान राम ने बताया कि एक कंपनी ने तो इस अनार की फसल को सीधे विदेशो में निर्यात करने का कहते हुए मुंहमांगे दामो में अनार खरीदने का प्रस्ताव दिया है। मगाराम ने बताया कि इस वर्ष दिसम्बर तक इन पोधो से अनार की फसल आना शुरू हो जायेगी।
प्रशिक्षण के आने की मांग- विषम परिस्थितियो में अनार जेसी फसल उगाने में पूर्णतः देशी तरीके से अधिक फसल लेने के मगाराम के तरीके को देखकर अनेक एग्रीकल्चर कम्पनियो ने उनको अपने खेती के तरीको को दूसरे किसानो को समझाने के लिए प्रशिक्षण देने के आने का न्योता भी दिया है।
बालोतरा। कहते है कि जंहा चाह वहा राह और आसमान में भी छेद हो सकता है बस जरुरत है तबियत से एक पत्थर उछालने की। कुछ इन्ही पंक्तियों को सच कर दिखाया है समदड़ी तहसिल क्षेत्र के टिकमपुरा गांव के रहने वाले किसान मगाराम काग ने। लूणी नदी के किनारे बसे टिकमपुरा गांव में किसान सदियो से परंपरागत खेती करते आये है। लेकिन दिनों दिन घटते जलस्तर ने यहाँ रहने वाले किसानो के लिए खेती करना मुश्किल बना दिया है।
परंपरागत खेती से आय के स्रोत कम होने से किसान परेशान है। ऐसे में इस गांव के किसान मगाराम काग ने परंपरागत खेती से हटकर कुछ नया करने की सोची। फिर खेत में अनार लगाने की ठानी ताकि खेत में मेहनत के अनुरूप कमाई हो सके। फिर मगाराम ने अपने खेत के सात बीघा में अनार के 1400 पोधे लगाए। पानी की किल्लत के कारण अनार की खेती के लिए ड्रिप पद्धति से सिंचाई करनी शुरू की। शुरुवात में उनको अनार के पोधो को बचाने के लिए अनेक जतन करने पड़े। यूरिया खाद आदि से अनार में आशातीत वृद्धि नहीं होने पर मगाराम ने वापस से देशी कंपोस्ट खाद से अनार के पोधे पनपाए। मगाराम की 22 महीने की मेहनत रंग लाई। आज उसके खेत में अनार के पोधे लहलहा रहे है।
मगाराम ने बताया कि बालोतरा क्षेत्र के बुडीवाडा गांव में जब उन्होंने खारे पानी से अनार की खेती होते देखा तो उनके मन में भी अनार की खेती करने का विचार आया। बाद में उन्होंने बुडीवाडा के किसान नगाराम पौण ने उन्हें अनार की खेती के तरीको के बारे में जानकारी दी। अब मगाराम के खेत में पूर्णतः देशी खाद से उगाए गए अनार के पोधो से मिलने वाली फसल के लिए अग्रिम रूप से देश की बड़ी ख्यातिनाम कम्पनियो का उनके वहा पहुचना शुरू हो गया है। गांव के ही मांगीलाल रातडा व् हड़मान राम ने बताया कि एक कंपनी ने तो इस अनार की फसल को सीधे विदेशो में निर्यात करने का कहते हुए मुंहमांगे दामो में अनार खरीदने का प्रस्ताव दिया है। मगाराम ने बताया कि इस वर्ष दिसम्बर तक इन पोधो से अनार की फसल आना शुरू हो जायेगी।
प्रशिक्षण के आने की मांग- विषम परिस्थितियो में अनार जेसी फसल उगाने में पूर्णतः देशी तरीके से अधिक फसल लेने के मगाराम के तरीके को देखकर अनेक एग्रीकल्चर कम्पनियो ने उनको अपने खेती के तरीको को दूसरे किसानो को समझाने के लिए प्रशिक्षण देने के आने का न्योता भी दिया है।
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