सुबह 10 बजे के बाद में आते है और 12 बजे से पहले चले भी जाते है
भगाराम पंवार (9887119003)
बालोतरा। राजकीय नाहटा चिकित्सालय में डॉक्टरों की लापरवाहीं से मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। एक और तो सरकार अस्पतालों में मरीजों को बेहतर सुविधाएं व इलाज मुहैया करवाने की बात करती है लेकिन उन्हीं के लापरवाह डॉक्टर नियमों की धज्जियां उडाते नजर आते है। उपखंड क्षेत्र के एकमात्र रैफरल अस्पताल में डॉक्टर अपने निजी फायदे के लिए हॉस्पिटल में आते हीं आनन-फानन में मरीजों का चैकअप कर चले जाते है। जो आडटडोर में मरीज आते है उन्हे सबसे ज्यादा परेशानियां उठानी पड़ रहीं है। डॉक्टर सुबह 10 बजे के बाद में आते है ओर 12 बजे से पहले चले भी जाते है।
गायनिक डॉक्टर की नौकरी सरकारी,सेवा देती है निजी अस्पताल में
उपखंड क्षेत्र के सबसे बड़े एकमात्र रैफरल अस्पताल में लंबे समय बाद एक गायनिक डॉक्टर की नियुक्ति की गई है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि वे खुद एक निजी अस्पताल में कार्यरत है और तो और वे नाहटा अस्पताल में इलाज के आने वाली महिला मरीजों को निजी अस्पताल में आने का कह देती है। जो महिला मरीज निजी अस्पताल में नहीं जाती है तो उनके इलाज में जानबूझकर देरी की जाती है। यह गायनिक डॉक्टर श्रीमती संतोष खोखर सुबह 10 बजे अस्पताल में आती है और 12 बजे चलीं जाती है अपनी ड्यूटी भी पूरी तरह से नहीं निभाती है। इसकी शिकायते पूर्व में भी कई बार की जा चुकी है लेकिन राजनितिक रसूख के चलते कोई कार्यवाहीं नहीं हुई।
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ कमल मूंदड़ा भी लापरवाह
नाहटा अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर 10 बजे अस्पताल में आते है और इनडोर में भर्ती मरीजों को देखकर चले जाते है ऐसे रवैये से आउटडोर के मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अस्पताल में बाल रोग के संबधित मरीज ज्यादा आते है परंतु डॉ कमल मूंदड़ा उनका चैकअप समय पर नहीं करते है। ऐसे में मरीज उनके घर पर जाकर चैकअप करवाते है। डिलीवरी पीरियड में भी आने वालीं महिला मरीजों को भी छोड़ कर चली जाती है। डॉ कमल मूंदड़ा के घर के सामने हर समय मरीजों की लंबी लाईने लगी नजर आती है।
अन्य डॉक्टर भी अपनी ड्यूटी के प्रति है बेपरवाह
अस्पताल को मरीज एक मंदिर का स्वरूप मानते है और डॉक्टरों को अपना भगवान फिर भी उन डॉक्टरों को उन गरीब मरीजों पर तरस नहीं आता है। बड़े ताज्जुब की बात है कि डॉक्टर आते है और चले जाते है उनको यह नहीं पता की आपको को तनख्वाह मिल रहीं है वो भी तो उसी जनता के जेब से जाती है और वे बड़ी आस लगाकर आते है हमारा इलाज होगा। बाहर आउटडोर में मरीजों की लंबी कतारें लगी रहती है लेकिन उनको देखने वाला कोई नहीं है प्रमुख चिकित्सा अधिकारी बलराजसिंह पंवार भी डॉक्टरों की इस प्रणाली से खफा है।
भगाराम पंवार (9887119003)
बालोतरा। राजकीय नाहटा चिकित्सालय में डॉक्टरों की लापरवाहीं से मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। एक और तो सरकार अस्पतालों में मरीजों को बेहतर सुविधाएं व इलाज मुहैया करवाने की बात करती है लेकिन उन्हीं के लापरवाह डॉक्टर नियमों की धज्जियां उडाते नजर आते है। उपखंड क्षेत्र के एकमात्र रैफरल अस्पताल में डॉक्टर अपने निजी फायदे के लिए हॉस्पिटल में आते हीं आनन-फानन में मरीजों का चैकअप कर चले जाते है। जो आडटडोर में मरीज आते है उन्हे सबसे ज्यादा परेशानियां उठानी पड़ रहीं है। डॉक्टर सुबह 10 बजे के बाद में आते है ओर 12 बजे से पहले चले भी जाते है।
गायनिक डॉक्टर की नौकरी सरकारी,सेवा देती है निजी अस्पताल में
उपखंड क्षेत्र के सबसे बड़े एकमात्र रैफरल अस्पताल में लंबे समय बाद एक गायनिक डॉक्टर की नियुक्ति की गई है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि वे खुद एक निजी अस्पताल में कार्यरत है और तो और वे नाहटा अस्पताल में इलाज के आने वाली महिला मरीजों को निजी अस्पताल में आने का कह देती है। जो महिला मरीज निजी अस्पताल में नहीं जाती है तो उनके इलाज में जानबूझकर देरी की जाती है। यह गायनिक डॉक्टर श्रीमती संतोष खोखर सुबह 10 बजे अस्पताल में आती है और 12 बजे चलीं जाती है अपनी ड्यूटी भी पूरी तरह से नहीं निभाती है। इसकी शिकायते पूर्व में भी कई बार की जा चुकी है लेकिन राजनितिक रसूख के चलते कोई कार्यवाहीं नहीं हुई।
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ कमल मूंदड़ा भी लापरवाह
नाहटा अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर 10 बजे अस्पताल में आते है और इनडोर में भर्ती मरीजों को देखकर चले जाते है ऐसे रवैये से आउटडोर के मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अस्पताल में बाल रोग के संबधित मरीज ज्यादा आते है परंतु डॉ कमल मूंदड़ा उनका चैकअप समय पर नहीं करते है। ऐसे में मरीज उनके घर पर जाकर चैकअप करवाते है। डिलीवरी पीरियड में भी आने वालीं महिला मरीजों को भी छोड़ कर चली जाती है। डॉ कमल मूंदड़ा के घर के सामने हर समय मरीजों की लंबी लाईने लगी नजर आती है।
अन्य डॉक्टर भी अपनी ड्यूटी के प्रति है बेपरवाह
अस्पताल को मरीज एक मंदिर का स्वरूप मानते है और डॉक्टरों को अपना भगवान फिर भी उन डॉक्टरों को उन गरीब मरीजों पर तरस नहीं आता है। बड़े ताज्जुब की बात है कि डॉक्टर आते है और चले जाते है उनको यह नहीं पता की आपको को तनख्वाह मिल रहीं है वो भी तो उसी जनता के जेब से जाती है और वे बड़ी आस लगाकर आते है हमारा इलाज होगा। बाहर आउटडोर में मरीजों की लंबी कतारें लगी रहती है लेकिन उनको देखने वाला कोई नहीं है प्रमुख चिकित्सा अधिकारी बलराजसिंह पंवार भी डॉक्टरों की इस प्रणाली से खफा है।
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