Followers

Thursday, February 25, 2016

ग्रामीण संस्कृति से रंगा बाड़मेर-बालोतरा

बाड़मेर राजस्थान में स्थित एक छोटा किंतु अलग-अलग रंगों से भरा शहर है। यहा पर बाड़मेर का जिला मुख्यालय है। यह शहर अब तेल नगरी के नाम से भी जाना जाता है। जिले में बड़़ी संख्या में तेल कुओं की खोज पूरी हो चुकी है तथा बड़ी संख्या में तेल भंड़ार मिलेे है अब तो यहा पर रिफाईनरी की सौगात भी मिल चुकी है। इस शहर की स्थापना बहाड़ राव ने 13वीं शताब्दी में की थी। उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम बाड़मेर पड़ा यानि बार का पहाड़ी किला। एक समय मालानी के नाम से जाना जाने वाला बाड़मेर अपनी जीवंतता के कारण सैलानियों को बहुत भाता है। बाड़मेर की यात्रा की एक खासियत यह भी है कि यह हमें राजस्थान के ग्रामीण जीवन से रूबरू कराता है। यात्रा के दौरान रास्ते में पडऩे वाले गांव, पारंपरिक पोशाकें पहने लोगों और रेत पर पड़ती सुनहरी धूप, बाड़मेर की यह मनोरम छवि आंखों में बस जाती है। मार्च के महीने में पूरा बाड़मेर रंगों से भर जाता है क्योंकि वह वक्त बाड़मेर महोत्सव का होता है। यह वक्त यहां आने का सबसे सही समय है। सिणधरी में यहां मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी को मेला लगता हैं जो एक महिने तक चलता हैं। मुख्य आकर्षण एक समय में जसोल मालानी का प्रमुख क्षेत्र था। रावल मल्लीनाथ के नाम पर परगने का नाम मालानी पङा, इस प्राचीन गांव का नाम राठौड़ उपवंश के वंशजों के नाम पर पड़ा। यहां पर स्थित जैन मंदिर और कई हिंदू मंदिर जसोल के मुख्य आकर्षण हैं। यहां एक चमत्कारिक देवी माता राणी भटीयाणी का मन्दिर है। जूना बाड़मेर हरसाणी यह बाडमेर-गिराब और शिव-गडरारोड सडक के मिलन स्थल पर एक चोराहे पर आया हुआ है। यहा एक माल्हण बाई का चमत्कारिक मन्दिर है। जानसिह की बेरी यह ग्राम शिव-गडरारोड मार्ग पर शिव से 43 किलोमिटर पर आया हुआ है यहा एक सन्चियाय माता का मन्दिर है। बालोतरा से 8 किलोमीटर दूरी पर खेड़ गांव स्थित है। खेड़ राठौड़ वंश के संस्थापक राव सिहा और उनके पुत्र ने खेड़ को गुहिल राजपूतों से जीता और यहां राठौड़ों का गढ़ बनाया। रणछओडज़ी का विष्णु मंदिर यहां का प्रमुख आकर्षण है। मंदिर के चारों और दीवार बनी है और द्वार पर गुरुड़ की प्रतिमा लगी है जिसे देख कर लगता है मानो वे मंदिर की रक्षा कर रहे हों। पास ही ब्रह्मा, भैरव, महादेव और जैन मंदिर भी हैं। जो सैलानियो क मुख्य आकर्षण का केन्द्र है। गुहिल राजपूत यहा से भावनगर चले गये और 1947 तक शासन किया । किराडु पहाड़ी की तराई में हाथमा गांव के पास स्थित है किराडु। 1161 ई. के शिलालेख से पता चलता है कि पहले इस स्थान का नाम कीरतकूप था। एक समय में यह परमार राजपूतों की राजधानी था। यहां पर पांच मंदिरों के अवशेष मिले हैं जिनमें से एक भगवान विष्णु को और चार अन्य भगवान शिव को समर्पित हैं। पुरातत्व की दृष्टि से इन मंदिरों का बहुत महत्व है। कला प्रेमियों को भी यह मंदिर आकर्षित करते हैं। इनमें से सोमेश्वर मंदिर सबसे बड़ा है। महावीर पार्क महावीर पार्क(बाङमेर) एक खूबसूरत हरा-भरा पार्क था। यहां पर एक छोटा-सा संग्रहालय भी है जहां पत्थर से तराशी गई मूर्तियां प्रदर्शित की गई हैं। सिद्वेश्वर महादेव मेला माहबार बाङमेर से 2 किलोमीटर की दूरी पर माहबार रोङ पर सिद्वेश्वर महादेव का मन्दिर आया हुआ है,जहां पर श्री महादेव जी के साथ, सन्तोषीमाता, बंजरग बली आदि के मन्दिर है। जहां हर वर्ष श्रावण महिने मे प्रत्येक सोमवार को मेला लगता है। श्रावण के अन्तिम सोमवार की रात्रि मे भजन संध्या का आयोजन होता है, जिसमे बङी संख्या मे श्रद्वालू सम्मिलित होते है। सूंईया मेला बाङमेर जिले की चौहटन कस्बा मे सूंईया महादेव का मेला भरता है। जिसमे दूर दराज से भारी मात्रा मे लोग आते है। हुडो कि ढाणी यह बायतु तहसील का एक गांव है। जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर सुनहरे धौरो के बीच बसा हुआ एक गांव है। यहा पर भगवान रणछोङराय का और बाबा रामदेव जी का प्रसिद मन्दिर है। यह जाटो के महीसा स्व.मांगाराम जी ढाका की जन्म स्थली है। आषाढ बदी ग्यारस को बाबा की जागरण रखी जाती है। विरात्रा माता का मेला चोहटन गाँव से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर विरात्रा में मेला आयोजित किया जाता है। यहाँ साल में तीन बार चैत्र, भाद्रपद तथा माघ में वांकल देवी की पूजा का मेला लगता है।

नाकोड़ा जैन तीर्थ
नाकोङा पार्श्वनाथ पंचपदरा तहसील के मेवानगर गांव में एक मेला लगता है। यह स्थान बालोतरा शहर से 10 किलो मीटर की दूरी पर है। यहाँ पर नाकोङा पार्श्वनाथ का जैन मंदिर है, जिसके चारों ओर का वातावरण काफी सुंदर है। यहाँ प्रत्येक वर्ष बङ्ी पूस 10 (दिसम्बर-जनवरी) को पार्श्वनाथ का जन्म उत्सव मनाने के लिए मेला लगता है। यहाँ पर तीन जैन मंदिर है, जो पार्श्वनाथ, शांतिनाथ तथा आदिनाथ को समर्पित हैं।, हर साल लगभग दस हजार की संख्या में लोग यहाँ इक_े होते हैं, जिसमें ज्यादातर लोग जैन धर्म को मानने वाले होते हैं।
राधाष्टमी का मेला
खेड़मेला पचपद्रा तहसील के अन्तर्गत खेङ गांव में प्रत्येक पूर्णिमा पर मंदिर के निकट एक धार्मिक मेला लगता है। राधा अष्टमी भाद्रपद सुदी 8 और 9 (अगस्त-सितम्बर) को एक बङा मेला लगता है। यह गांव बालोतरा से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
कल्याणसिंह का मेला
प्राचीन काल में सभ्यता का मुख्य केन्द्र था। कल्याण सिंह का मेला यह मेला सिवाना दुर्ग में अलाउद्दीन की सेना के विजय अवसर पर लगता है। यह श्रावण सुदी 2 (जुलाई-अगस्त) में प्रत्येक वर्ष लगता है। लगभग 5000 लोग इस अवसर पर जमा होते हैं। जिले के अन्य मुख्य त्योहारों में होली,शीतला अष्टमी, गणगौर, रक्षा-बंधन, अक्षय-त्रितिया, दशहरा, दीपावली, ईद-उल-जुहा आदि है। महावरी जयंती तथा पर्यूशन जैन लोगों का महत्वपूर्ण पर्व है।
सिणधरी पशु मेला
सिणधरी पशु मेला लूनी नदी के तट पर स्थित सिणधरी गाँव मे यह मेला लगता है। यह जिले का प्रमुख पशु मेला है। यह मेला मनोरंजक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। यह शहर बालोतरा एवं बाड़मेर रेलवे स्टेशन से 60 किलो मीटर की दूरी पर स्थित है। यह प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष बदी 5 (नवंबर-दिसम्बर) में लगता है। जो एक माह तक चलता हैं । हजारों की संख्या में लोग यहाँ इक_े होते हैं । हजारों जानवार यहां खरीद-बिक्री के लिए लाए जाते हैं। तथा ऊनी कपङों की अच्छी वैरायटी यहाँ मिलती हैं ।
गोयणेश्वर महादेव
गोयणेश्वर महादेव का विशाल मेला शिवरात्री को लगता है जो तीन दिन तक चलता है यह बाङमेर जिले की सिणधरी तहसील के डँडाली गाँव मे विशाल पहाड़ी पर मेला लगता है यहीं पर रावळ गुलाबसिह सिणधरी रहा करते थे वे परम गौ भक्त थे यहाँ पर रावळ गूलाबसिह की विशाल प्रतिमा लगी हुई है यहाँ पर दुर्लभ दुर्गम पहाड़ी है और यहाँ दुर दुर से यात्री आते है खरीदारी के शौकीन लोगों के लिए बाड़मेर किसी स्वर्ग से कम नहीं है। यहां रंगबिरंगी कढ़ाई में जड़े हुए शीशे सैलानियों को आकर्षित करते हैं। विशेषरूप से विदेशी सैलानी इन वस्तुओं को अवश्य खरीदते हैं। पारंपरिक रंगों और बुनाई से बने शॉल,कालीन, दरी और कंबल इस क्षेत्र की खासियत हैं। सदर बाजार के आसपास बनी छोटी-बड़ी दुकानों से इन चीजों की खरीदारी की जा सकती है। बायतु . यह प्रसिद लोक देवता खेमा बाबा का जन्म स्थल है। यहा पर गुजरात और राजस्थान के दुर दुर से यात्री आते है। भादवा सुदी नवमी माघ सुदी नवमी और चैत्र सुदी नवमी को मेला लगता है।
आसोतरा ब्रह्माधाम तीर्थ
बालोतरा से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ब्रह्माधाम तीर्थ देश का दूसरा सबसे बड़ा ब्रह्मा मंदिर है। यहा पर राजपुरोहित समाज से संत श्री खेतारामजी महाराज ने तपस्या की और इस क्षेत्र को एक अलग पहचान दिलाई। गुरू महाराज खेतारामजी के देवलोकगमन होने के पश्चात उनके शिष्य तुलसारामजी महाराज को गादिपति बनाया गया और आज वे भक्तों का मार्गदर्शन कर रहे है।
बाबा रामसापीर की विश्राम स्थली बिठूजा
बालोतरा से आठ किलोमीटर दूर स्थित बाबा रामदेवजी की विश्राम स्थली के नाम से विख्यात बिठूजा धाम में प्रत्येक शुक्ल पक्ष की दूज को मेला लगाता है। यहा श्रद्धालु भोर होने से पहले ही पैदल जत्थों के रूप में आते है और बाबा के चरणों में शीश नवाने के बाद में सुगणा बाई व डाली बाई मंदिर के दर्शन करने के बाद में भगवान भोलेनाथ की आदमकद प्रतिमा की पूजा अर्चना करते है। यहा मान्यता है कि बाबा रामदेवजी सुगण बाई को लेने गए थे तभी उन्होंने यहा पर तालाब के किनारे विश्राम किया था।
तिलवाड़ा पशु मेला
मल्लीनाथ मेला राठौड़ राजवन्श के रावल रावल मल्लीनाथ के नाम पर मल्लीनाथ मेला राजस्थान के सबसे बड़े पशु मेलों में से एक है। यह बाड़मेर जिले के तिलवाडा गांव में चैत्र बुदी एकादशी से चैत्र सुदी एकादशी (मार्च-अप्रैल) में आयोजित किया जाता है। इस मेले में उच्च प्रजाति के गाय, ऊंटों, बकरी और घोडों की बिक्री के लिए लाया जाता है। इस मेले में भाग लेने के लिए सिर्फ गुजरात से ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से भी लोग आते हैं। मेवा नगर 12वीं शताब्दी का यह गांव किसी समय विरानीपुर के नाम से जाना जाता था। इस गांव में तीन जैन मंदिर हैं। इनमें से सबसे बड़ा मंदिर नाकोडा पार्श्वनाथ का समर्पित है। इसके अलावा एक विष्णु मंदिर भी है जो देखने लायक है। इस जगह का राठौड़ राजवन्श के इतिहास मे प्रमुख स्थान है । राठौड़ राजवन्श के रावल सलखा के पुत्र रावल मल्लीनाथ के वन्शज महेचा राठौड़ कहलाते थे, उन मल्लीनाथ के नाम पर ही इसका नाम महेवानगर पङा जो कि कालान्तर मे मेवा नगर हो गया। यहा नजदीकी हवाई अड्डा जोधपुर है जो देश के बाकि हिस्सों से जुड़ा हुआ है। यह क्षेत्र रेल मार्ग व सडक़ मार्ग के जरिए जोधपुर से जुड़ा है। सडक़ मार्ग बाड़मेर बसों के जरिए जैसलमेर और गुजरात से जुड़ा हुआ है।
औद्योगिक नगरी बालोतरा
औद्योगिक नगरी के नाम से विख्यात बालोतरा में की पहचान कपड़ा उद्योग के कारण आज देश व विदेशों में भी बन गई है। यहा पर टैक्सटाईल उद्योग होने से सैकड़ो लोगों को रोजगार मिलता है। कच्चा कपड़ा बालोतरा की औद्योगिक ईकाईयों में आता है और यहा पर धुपाई,ब्लीचिंग,रंगाई,छपाई के बाद बड़ी-बड़ी मिलों में जाकर कपड़ा तैयार होता है जो देश व विदेशों में अपनी अलग पहचान बना चुका है।


No comments:

Post a Comment

'; (function() { var dsq = document.createElement('script'); dsq.type = 'text/javascript'; dsq.async = true; dsq.src = '//' + disqus_shortname + '.disqus.com/embed.js'; (document.getElementsByTagName('head')[0] || document.getElementsByTagName('body')[0]).appendChild(dsq); })();

सर्व समाज ने दिया ज्ञापन

हिंदुओं पर बढ़ते अत्याचार को लेकर सर्व समाज द्वारा राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन बालोतरा वफ्फ बिल के विरोध की आड़ में सुनिश्चित योजना...